आँगन में तुलसी का बिरवा
सुबह उठते ही जल चढ़ाती जिस पर
दिया लगाती अगर बत्ती जलाती
सुगंध से महकाती परिसर |
है वह गृहणी इस घर की
घर के लोगों की सम्रद्धि के लिए
करती यथा संभव सभी यत्न
महनत से दान धर्म से पीछे न हटती |
अपनी
पीड़ा किसी से न बांटती
हर कार्य के लिए रहती तत्पार
मुस्कान से सभी का करती स्वागत
लोगों के मुंह से सदा उसकी तारीफ निकलती |
पर एक ही दुःख उसे सालता
जिससे रहती अपेक्षा वही कभी यश न देता
दो बोल मीठे सुनने को मन तरसता
क्या लाभ महिला दिवस पर सम्मान देने का |
क्या लाभ महिला दिवस पर सम्मान देने का |
बरसों से यही सिलसिला रहा जारी
बाहर की दुनिया में जब हंसकर निकलती
लोगों की ईर्षा का सामना करती
वही जानती है असलियत पहचानती है |
एक दिन की अतिथि बनना है सरल
सभी स्वागत भाषण करते नहीं थकते
सभी स्वागत भाषण करते नहीं थकते
मंच पर हार फूल से स्वागत किसे लगता बुरा
पर सच है यही कि वह जहां थी रही वहीं |
आशा
आशा