बदले समय के  साथ में  
बढ़ती जनसंख्या के भार से 
बड़े मकानों का चलन न रहा  
रहनसहन का ढंग बदला |
पहले बड़े मकान होते थे 
उनमें आँगन होते थे अवश्य 
दोपहर में चारपाई डाल महिलाएं 
 बुनाई सिलाई करतीं थीं
धूप का आनंद लेतीं थीं |
धूप का आनंद लेतीं थीं |
अचार चटनी मुरब्बे में धूप लगातीं
गर्मीं में ऊनी कपडे सुखाना  
सम्हाल कर रखना नहीं भूलतीं थीं 
आँगन  ही  थी  कर्मस्थली उनकी |
बच्चों के  खेल का मैदान भी वही था  
 रात में चन्दा मांमा को देख कर  खुश होने  को कैसे भूलें 
तारों  के संग बातें करना 
 मां से  कहानी सुनना  न  छूटा
कभी |
जब कोई तारा टूटता
मांगी मुराद पूरी करता
मांगी मुराद पूरी करता
हाथ जोड़    कभी  मन की 
मुराद  माँगते
या चाँद पकड़ने के लिए बहुत बेचैन रहते  |
मां थाली में जल भर कर 
चान्द्रमा के अक्स को दिखा कर हमें बहलातीं
फिर थपकी दे कर हमें सुलातीं |
चान्द्रमा के अक्स को दिखा कर हमें बहलातीं
फिर थपकी दे कर हमें सुलातीं |
आज  शहरों के बच्चे रात में 
बाहर निकलने से भयाक्रांत होते है 
शायद उन्हें यही भय रहता है
 कहीं चाँद उन पर ना  गिर जाए |
कारण समझने में देर न लगी 
बढ़ती आबादी ने आँगन सुख से दूर किया है 
छोटे मकानों में आँगन की सुविधा कहाँ  
  यादें भर शेष रह गईं है घर के बीच आँगन की | 
आशा
आशा

वाकई... बड़े शहरों के बच्चे आँगन की अहमियत नहीं जान पाएंगे...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मानव जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद मान्या जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (7-3-2020 ) को शब्द-सृजन-11 " आँगन " (चर्चाअंक -3633) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए धन्यवाद कामिनी जी |
वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दीदी.
जवाब देंहटाएंसिमट गये आँगन...
टिप्पणी के लिए धन्यवाद अनिता जी |
जवाब देंहटाएंसच है जो सुख आँगन वाले घरों में है वह आजकल के फ्लैट्स में कहाँ ! पूरी पीढियां ही उन आंगनों में पनप कर युवा हो जाती थीं ! अब तो बस यादें शेष हैं !
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
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