एक नन्हां सा तिनका 
समूह से बिछड़ा हुआ 
राह में भटक गया
 बारम्बार सोच रहा
 जाने कहाँ जाएगा 
होगा क्या हश्र उसका
और कहाँ ठौर उसका
और कहाँ ठौर उसका
 यदि पास दरिया के गया  
बहा ले जाएगी उसे 
उर्मियाँ अनेक होंगी 
उनके प्रहार से हर बार 
क्या खुद को बचा पाएगा 




