काश हमारे जीवन में 
कुछ नया होता तो 
 हम 
 सह्लेते 
पर घुटने ना टेकते |
यही आस्था है मन में
जता नहीं सकती सब को 
यही समस्या है मेरी, किस को याद करू
कैसे उसे हल करू अपना मानूं |
 है यह मन चंचल का प्रताप 
कभी सोच नहीं पाई 
कोई हल नजर ना आया 
कोई निष्कर्ष  निकाल  नहीं पाई |
मन में धैर्य का अभाव रहा 
तभी नतीजा ना मिल पाया 
इस धैर्य को कैसे प्राप्त करूं 
किसे गुरू स्वीकारूं|
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