17 अप्रैल, 2014

पैनी धार



है बेवाक विचारों की परिचायक
बिकाऊ नहीं
ना ही लालायित
यशोगान के लिए |
है विशिष्ट सब से जुदा
अदभुद शक्ति छिपी इस में
भावाभीव्यक्ति के लिए |
किसी का प्रभाव न होता इस पर
ना बिकती धन के लिए
कोई  प्रलोभन झुका न पाता
उन्मुक्त भाव लेखन में होता |
पारदर्शिता की पक्षधर
यही है  लेखनी धार जिसकी पैनी
जो धार पर चढ़ जाता
उसका बुरा हाल होता |
जो सत्य से दूर भागता
इससे बच न पाता
इतना आहत होता
सलीब पर खुद चढ़ जाता |
यही बातें इसकी
मुझे इसका कायल बनातीं
मेरी लेखनी की धार
 अधिक तेज होती जाती |
आशा

15 अप्रैल, 2014

अर्थ अनेक



एक शब्द अर्थ अनेक
सब के विश्लेषण सटीक    
जब सोचा समझा उपयोग किया
कितने ही पीछे छूट गए |
शब्द कोष में खोजा उनको
एक कल्पना की  मैंने
नया साहित्य सृजन करने की
उन्हें उचित स्थान देने की |
बड़े साहित्यकारों की तरह
कुछ का उपयोग किया भी
पर खरा न उतर पाया 
उनको सम्मान देने में |
वही शब्द भाषाएँ अनेक
सब में अर्थ अलग अलग
कुछ भी तो समान नहीं
खोता गया शब्दों के समुन्दर में |
पर जो चाहा वैसी रचना
ना कल बनी न आज बन पाई
मैं उलझा रहा नए पुराने
 शब्दो के जाल बांधने में  |
अभी भी बेकली छाई है
मन चाहता तराशना
शब्दों के समूह को
नया रूप देने को |
आशा

13 अप्रैल, 2014

कुसुम



महकती चहकती
निशा सुन्दरी श्रंगार करती
सध्य खिलते सौरभ बिखेरते
डाली पर सजे पुष्पों से |
भीनी खुशबू जब आती
उसी और खींच ले जाती
पवन से हिलती डालियाँ
श्वेत चादर सी बिछ जाती  
प्रातः वृक्ष के नीचे |
सुनहरी धुप के सान्निध्य से
कुम्हलाते पर दुखी न होते
अपने सुख दुःख भूल
जीवन जीते मस्ती से |
उनकी जीने की कला
तनिक भी यदि सीखी होती
जितनी  साँसे  मिलतीं
खुशी खुशी जी लेते
उनका भरपूर उपयोग करते |
आशा