
है बेवाक विचारों की परिचायक 
बिकाऊ नहीं 
ना ही लालायित 
यशोगान के लिए |
है विशिष्ट सब से जुदा 
भावाभीव्यक्ति के लिए |
किसी का प्रभाव न होता इस पर 
ना बिकती धन के लिए 
कोई  प्रलोभन झुका न पाता 
उन्मुक्त भाव लेखन में होता |
पारदर्शिता की पक्षधर 
यही है  लेखनी धार जिसकी पैनी 
जो धार पर चढ़ जाता 
उसका बुरा हाल होता |
जो सत्य से दूर भागता 
इससे बच न पाता
इतना आहत होता 
सलीब पर खुद चढ़ जाता |
यही बातें इसकी 
मुझे इसका कायल बनातीं 
मेरी लेखनी की धार
 अधिक तेज होती जाती |
आशा
आशा

