हसरतों की बारिशें
जब कम थीं भली लगती थीं
ख्वाइशें पूर्ण करने की
मन में ललक रहती थी
वे पूर्ण यदि ना हो पातीं
अधूरी ही रह जातीं
बहुत दुखी करतीं थीं |
पर जब से बरसात इनकी
थमने का नाम नहीं लेती
कभी ओले का रूप भी लेती
बन जाती सबब परेशानी का
लगता डर हानि का
उत्साह कमतर होता जाता
जाने कहाँ खो जाता
प्यार के गुब्बारे की
हवा निकलती जाती
उदासी अपना पैर जमाती |
आशा