होता नहीं विश्वास
दोहरे मापदंडों पर ,
अंदर कुछ और बाहर कुछ
बहुत आश्चर्य होता है
जब दोनों सुने जाते हैं
अनुभवी लोगों से |
हैं ऐसे भी घर इस जहाँ में
जो तरसते हैं कन्या के लिये |
उसे पाने के लिये ,
कई जतन भी करते हैं |
लगता है घर आँगन सूना
बेटी के बिना अधूरा |
पर जैसे ही बड़ी हो जाती है
वही लोग घबराते हैं |
बोझ उसे समझते हैं
छोटी मोटी भूलों को भी ,
बवंडर बना देते हैं ,
वर्जनाएं कम नहीं होतीं
कुछ ना कुछ सुनने को
मिल ही जाता है |
बेटी है कच्ची मिट्टी का घड़ा
आग पर एक ही बार चढ़ता है
उसे पालना सरल नहीं है ,
है आखिर पराया धन
जितनी जल्दी निकालोगे
चिंता मुक्त हो पाओगे |
यदि भूल से ही सही
कहीं देर हो जाये
हंगामा होने लगता है ,
इतनी आज़ादी किस काम की
सुनने को जब तब मिलता है|
लड़के भी घूमते हैं
मौज मस्ती भी करते हैं
उन्हें कोई कुछ नहीं कहता
उनकी बढ़ती उम्र देख
सब का सीना चौड़ा होता |
दोनों के पालन पोषण में
होता कितना अंतर |
लड़कों के गुण गुण हैं
लड़की है खान अवगुणों की |
है यह कैसा भेद भाव
कैसी है विडंबना
घर वालों के सोच की
समाज के ठेकेदारों की |
कथनी और करनी में अंतर
जब स्पष्ट दिखाई देता है
सही बात भी यदि कही जाए
मानने का मन नहीं होता
मन उद्दंड होना चाहता है
विद्रोह करना चाहता है |
आशा