25 जुलाई, 2013

हाँ या नां




कभी हाँ तो कभी ना
क्या समझूं इसे
उलझी हुई हूँ
गुत्थी को सुलझाने में |
यूं तो मुंह से
 हाँ होती नहीं
लवों पर ना ही ना रहती
 पर होती हल्की सी जुम्बिश
लहराती जुल्फों  में
आरज़ू अवश्य रहती
कि ना को भी कोइ हाँ समझे
उलझी लट  सुलझाए
प्यार का अहसास समझे
ना को भी हाँ समझ
नयनों की भाषा समझे
मन में उतरता जाए | 
आशा








23 जुलाई, 2013

बागे वफ़ा



आज न जाने क्यूं ?
बागेवफ़ा वीरान नज़र आता
बेवफ़ा कई दीखते
पर बावफ़ा का पता न होता
चन्द लोग ही ऐसे हैं
जो दौनों में फर्क समझते
जज्बातों की कद्र करते
गलत सही पहचानते
आगे तभी  कदम बढ़ाते
हमराज  बन साथ होते
कुछ ही वादे करते
बड़ी शिद्दत से जिन्हें निभाते
जो बेवफ़ा होते
प्यार को बदनाम करते
झूटमूट के वादे करते
एक भी पूरा न करते
तभी तो विश्वास
प्यार से उठता जाता
हर कदम पर
धोखा ही नज़र आता |
आशा