चाँद सा गोल चेहरा
रोटी भी उसके जैसी
बहुत दिल से
पर तुमने न सुनी अरदास
ऐसा किस लिए ?
सच्चे दिल से निकली आवाज
और इन्तजार भी किया था
मगर तुम न आए
यह बर्ताव क्या अनुचित नहीं
या मेरी ही धारणा गलत थी |
ऐसी आशा नही थी कि
तुमने मुझे जाना न होगा
सतही तुम्हारा प्यार होगा
दोहरी जिन्दगी तुम्हारी
मुझसे सही नहीं जाती |
तुमने मुझे पहले भी न समझा
अब भी नहीं
यह दुराव क्यूँ
कुछ सोचते हो और करते कुछ और |
शब्दों की हेराफेरी
तुम्हें भाती होगी पर मुझे नहीं
मैं जो भी सोचती हूँ
उसी लीक पर चलती
हूँ|
मेरा मन हैं शीशे जैसा
इधर उधर भटकता नहीं
जिस पर होता विश्वास
उसी का अनुकरण करता |
यही बात मुझे
तुमसे करती अलग
चहरे पर लगा एक और चेहरा देख
मुझे अपनापन नहीं लगता |
जी जान से तुम्हें अपनाया
बदली हुई तुम्हारी तस्वीर देखी
मन को ठेस लगी
क्या तुम पहले जैसे
नहीं हो पाओगे
जब केवल मुझे ही प्यार करोगे
जब रूठ जाऊंगी
तुम ही मुझे मनाओगे
वादा करो कहीं फिर से
बदल तो न जाओगे |
आशा
जीवन की पुस्तक मेंआज
एक पन्ना और जुड़ा है
कभी सोचा न था
यह क्या हुआ है |
हर बार की तरह
इस बार भी उसे
अपठनीय करार दिया
गया|
मन में विद्रोह उपजा
ऐसा क्यूँ हुआ ?
किस कारण से हुआ?
पर अभी तक प्रश्न अनुत्तरित
हैं
इनके उत्तर ढूँढूं कहाँ
जिससे भी जानना चाहा
उसी ने कहा यह तो
जीवन में आने वाली सामान्य
सी
सहज ही सी
प्रतिक्रिया है |
कोई कारण नहीं
यूँही चिंता करने
में
मन में व्यर्थ का
भय पालने में |
जीवन कभी सहज न हो पाएगा
ऐसे ही दबा रहेगा यदि
प्रश्नों के बोझ तले
जीना दूभर हो जाएगा |
आशा