Akanksha -Asha Lata Saxena
Akanksha
16 अप्रैल, 2021
हाइकु(श्याम )
हैं ग्वालवाल
कदम तले ठहर
वाट जोहते
श्याम अधूरे
राधा रानी बिना हैं
शक्ति है राधा
बन्सी वाले में
मन मेरा उलझा
हुई भक्त मैं
मन मोहन
मुझसे मत रूठो
हो श्याम मेरे
नट नागर
बाँसुरी का बजैया
मन हरता
आशा
15 अप्रैल, 2021
मौसम गर्मीं का
जाने कितनी
उपजी है उमस
धरती पर
सहन नहीं होती
जाने क्या होगा
बेइन्तहा है गर्मीं
अभी हुई है संध्या
रात दूर है अभी
कैसे कटेगी
कहर ढाती गर्मीं
जाने क्या होगा
हाल इस गर्मीं में
-आँखों में कटी
सारी रात गुज़री
भोर न हुई
दिन की राह देखी
जाने कब हो
मौसम खुशनुमा
घुटती जान
अभी से यह गर्मीं
लू के थपेड़े पड़े
हुए दुश्मन
है यह ट्रेलर तो
आगे जाने क्या होगा
बैरी मौसम
अब आम लोगों
का
बचेंगे कैसे
ग्लोबल वार्मिंग से |
आशा
14 अप्रैल, 2021
एक रस जीवन हुआ है
तारों की छाँव में
तारे गिन गिन
कब रात बीती मुझे
याद नहीं |
कब भोर हुई मुर्गे ने दी बाग़
पक्षियों का कोलाहल बढ़ा
यह तक मुझे मालूम
नहीं |
रात तारे गिन थकी भोर हुई तब पलक झपकी
नींद ने थपकी दी कब
सो गई पता नहीं |
प्रातःकाल की रश्मियाँ खेलती हरियाली संग
कब लौटीं अम्बर में यह भी याद नहीं |
धूप चढी आँखें खुलीं
फिर काम की धुन लगी
व्यस्त हुई इतनी कब
शाम हुई पता नहीं |
आदित्य चला अस्ताचल को लाल सुनहरी थाली सा
कभी छिपा वृक्षों के पीछे फिर हुआ उजागर
आसमा हुआ रक्तिम लाल सुनहरा |
रात्रि फिर से आई साथ चाँद तारों को भी लाई
मैंने भी सब काम कर शय्या
की ओर दौड़ लगाई |
यही दिन रात की है
मेरे जीवन की कहानी
कोई परिवर्तन नहीं इसमें
इतना भर है याद मुझे |
जीवन एक रस हुआ है
चाहती हूँ सुकून का थामना पल्ला
कुछ नया करने की लालसा
उपजी है मन में |
आशा
13 अप्रैल, 2021
पर्यावरण
प्रकृति नटी करती जब नर्तन
मन रमता जाता उसमें
नाज नखरे उसके सह न पाते
है राज क्या इस नृत्य का |
कभी नरम और कभी गरम
कैसा है मिजाज उसका
कोई मिसाल नहीं
बेमिसाल है निखरा रूप उसका |
जब सागर का जल लेता उफान
लगता भय देख कर
रौद्र रूप उसका
उछाल लहरों का देखा
नहीं जाता
बर्बादी का मंजर सहा नहीं जाता|
जब आपदा आती है अनजाने
में
चुपके से बिना बताए
अस्त व्यस्त होता जन
जीवन
डगमगाने लगता पर्यावरण संतुलन |
होता बहुत कठिन उसका
संरक्षण
पर मानव ही है कारण इसका
यदि ध्यान दिया जाए सतर्क
रहा जाए
सीमित संसाधन का सही दोहन हो |
प्राकृतिक संतुलन पर प्रहार न हो
ऐसी आपदा बार बार न आए
जीवन सुखद हो जाए
जन जीवन सरल सहज हो जाए |
आशा
12 अप्रैल, 2021
स्वर साधना
-
मन वीणा के तारों में
स्वर साधा है आत्मा
ने
शब्द चुने अंतर घट
से
रचनाओं को सवारा है |
मीठी मधुर तान जब
सुन पाता परमात्मा
खुद पर बड़ा गर्व होता
कहता है वह बहुत
भाग्यशाली |
कुछ ही लोग होते हैं ऐसे
जिन्हें सुनाई दे
जाती
वीणा की वह मधुरिम तान
वे नजदीक ईश्वर के होते
उनकी हर बात की
पहुँच
वहां तक होती सरलरेखा
सी सीधी
कोई व्यवधान न आते
मध्य में
जब उसे ठीक से सुना
जाता
प्रति उत्तर भी वे समय
पर पाते
प्रभु का आशीष पा कर
स्वयं को धन्य समझते
जब मन वीणा की चर्चा
होती
आत्मिक सुख का अनुभव करते
हर चर्चा में बढचढ कर भाग लेते
विचार विमर्श में अग्रणीय रहते
और फूले नहीं समाते |
आशा
10 अप्रैल, 2021
हाइकु
१-सतही रिश्ते
कभी साथ न देंते
काम न आते
२-जाने दो बातें
पुरानी हो गई है
क्या लाभ है
३-जी दुखे जब
भूल जाओ प्रसंग
ना दोहराओ
४- किसने कहा
हर बात तुमसे
है संबंधित
५-आज का दिन
हुआ बहुत भारी
फैला कोरोना
६- नियम सारे
रख किनारे पर
डूबने चले
आशा
09 अप्रैल, 2021
राज
दिल नहीं चाहता
गैरों से संबाद करू
जब भी ऐसे अवसर आते
वे दुःख ही देते
कभी सही सलाह नहीं देते |
अपने तो अपने होते
मतलबी नहीं
जो मतलब की बातें करते
उन्हें अपना समझने की भूल
अक्सर हो जाती
बचने के
लिए
इससे
अपनी कोई बात
जब वे बाँट नहीं सकते
सोचो हैं कितने गहरे पानी में
उनकी पहचान तभी
हो पाएगी
तभी असली राज
खुल पाएगा
|
आशा
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