01 अगस्त, 2020

आया राखी का त्यौहार

                                 आया राखी का त्योंहार
  ना तो गहमा गहमी बाजार में
 ना ही कोई उत्साह
 आम जन मानस में |
हर ओर  कोरोना
 महामारी का भय व्याप्त
मार्ग सभी अवरुद्ध हुए है
 किससे  जाना हो संभव |
बहन ने मना कर दिया
 आना है असम्भव इस बार  
मन को झटका लगा
 कैसे मानाएं यह त्यौहार
भाई बहन के समागम के  बिना |
 अजीब सा खालीपन लगेगा
घर में घेवर बना लेंगे 
मीठी खीर बनालेंगे |
 मन को समझाया 
यह साल निकल जाने दो
अभी है बिपदा भारी
 घर में ही राखी मना लेंगे |
 अगले बर्ष  का इंतज़ार रहेगा
 तभी अरमां पूर्ण करेंगे
 यह है कठिन समस्या
 इससे क्या घबराना |
 हर वर्ष यही त्योंहार होगा
 हम होंगे  भाई रहेंगे
पहली राखी भेट चढ़ेगी प्रभू को 
इसबार वंचित रह् जाएगा भाई |
पर इससे ही संतोष करेंगे
 घर में रह कर
 मन को समझालेंगे 
बच्चों को बहला लेंगे |
अन्य विकल्प नहीं  है कोई
 मन को शांत रखने का
पर समय की मांग है यह
 इससे पीछे नहीं हटेंगे |
आशा
  

31 जुलाई, 2020

जैसा दिखता वैसा होता नहीं


लागलपेट नहीं  कोई
ना  दुराव छिपाव कहीं  
झूट प्रपंच से रहता दूर
मन महकता चन्दन सा |
हर बात सत्य नहीं होती
 आधुनिकता के इस  युग में
 जैसा देखता  वही सोचता
उपयोग न करता बुद्धि का |
जो जैसा दिखता है , नहीं है वैसा 
बाहर से है कुछ और  
अन्दर से है रंग और
रंग भीतर का सर चढ़ बोलता |
मुंह पर मुखोटा लगा कर
दुनिया से तो  बचा रहता
सत्य उजागर होते ही वह
मुंह छिपाए फिरता  |
कटु सत्य सहन नहीं होता
मन विद्रोही यदि होता    
 बगावत का झंडा फहराता
समाज से अलगाव  होता |

आशा

30 जुलाई, 2020

सूर्य की अटखेलियाँ



 सात घोड़ों के रथ पर हो सवार 
 प्रातः से सांध्य बेला तक
आदित्य तुम्हारे रूप अनूप
सुबह तुम्हारी रश्मियाँ अटखेलियाँ करतीं
हरी भरी वादियों में |
कभी धूप कभी छाँव होती
बादलों के संग तुम्हारी  लुका छिपी में
जितना आनंद आता 
शब्दों में बयान  मुश्किल होता |
कभी वृक्षों की ओट से  झांकना
कभी तेज तपता दहकता  रूप दोपहर में
कभी आगमन कभी पलायन
है यह कैसा खेल तुम्हारा |
सांझ होते ही अस्ताचल में जा छिपते
दूर से थाली से दिखते
रात को भी विश्राम न करते  
चाँद की रौशनी है तुमसे  |
है चाँद तुम्हारा ऋणी  
वह यह कभी नहीं  भूलता
  भोर होते ही तारों के संग
 व्योम में कहीं  दुबक जाता |
खेल ही खेल में तुम्हारा
 सारा दिन कहाँ निकल जाता
पर  जो आनंद हमें  आता
 उससे कोई दूर नहीं कर  पाता |
आशा




29 जुलाई, 2020

पद चिन्ह





जब हो आचरण ऐसा कि
 पद चिन्हों  पर चल कर जिसके
गर्व होने लगे  श्रद्धा में सर झुके
 सब कहें किसके अनुयाई हो |
 बात यही  आकर्षित करती  सब को
पहले जानकारी लेते अनुयाइयोँ से
फिर दिल की इच्छा जानना चाहते  
स्वीकृति मिलती तभी कदम आगे बढ़ाते | 
गुरू चुनते बहुत छानबीन कर
यह खेल नहीं है आज जिसे चुना
मन को रास नहीं आया तो बदल लिया
पानी पीजे छान कर गुरू कीजे जान कर |
सच्चा  गुरू  यदि मिल जाए
 उसके ही  पद चिन्हों पर चल कर
 यह  जिन्दगी सफल हो जाए
कहावत पूरी सत्य हो जाए |
हो  व्यक्तित्व  ऐसा कि हो प्रकांड पंडित  
मुख मंडल  से तेज टपकता हो
हो वाणी  ऐसी मन मोहक
कि मन मन्त्र मुग्ध हो जाए |
छल छिद्र से दूर प्रभु भक्ति में लीन
उसके ही पद चिन्हों पर चल कर
दुनिया के प्रपंचों से दूरी रहेगी
गुरू शिष्य परम्परा का उदाहरण रहेगी   |
आशा