मिलते हज़ारों में
दो चार अनुयायी सत्य के
सत्यप्रेमी यदा कदा ही मिल पाते
वे पीछे मुड़ कर नहीं देखते !
सदाचरण में होते लिप्त
सद्गुणियों से शिक्षा ले
उनका ही अनुसरण करते
होते प्रशंसा के पात्र !
लेकिन असत्य प्रेमियों की भी
इस जगत में कमी नहीं
अवगुणों की माला पहने
शीश तक न झुकाते
अधिक उछल कर चले
वैसे ही उनके मित्र मिलते
लाज नहीं आती उन्हें
किसी भी कुकृत्य में !
भीड़ अनुयाइयों की
चतुरंगी सेना सी बढ़ती
कब कहाँ वार करेगी
जानती नहीं
उस राह पर क्या होगा
उसका अंजाम
इतना भी पहचानती नहीं !
दुविधा में मन है विचलित
सोचता है किधर जाए
दे सत्य का साथ या
असत्य की सेना से जुड़ जाए
जीवन सुख से बीते
या दुखों की दूकान लगे
ज़िंदगी तो कट ही जाती है
किसी एक राह पर बढ़ती जाती है
परिणाम जो भी हो
वर्तमान की सरिता के बहाव में
कैसी भी समस्या हो
उनसे निपट लेती है !
आशा सक्सेना