जन्म से ही
शिशु को मिली पालकी
शिशु को मिली पालकी
पहला पालना मिला
माँ की गोद का
माँ की गोद का
दूसरा अपने वालों का
फिर आए दिन
नित नई बाहों में खेल
नित नई बाहों में खेल
बचपन बिताया
जी भर खेल कर
जी भर खेल कर
जवानी जब आई झांकती
माँ
को चिंता हुई
बेटी की बिदाई की
बेटी की बिदाई की
जब वर आया
घोड़ी पर चढ़ कर
घोड़ी पर चढ़ कर
धूमधाम से बिदाई हुई
पालकी में बैठ कर
पालकी में बैठ कर
तब भी चार कन्धों पर की सवारी
पालकी में हो कर सवार
चली ससुराल अपनी
चली ससुराल अपनी
जीवन सहजता से
सरलता से बीत गया
सरलता से बीत गया
धर्म कर्म में भी
दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
इसी पालकी में बैठ
दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
इसी पालकी में बैठ
अब आया समय
संसार से विदाई का
छोड़ कर यह देह
आत्मा ने ली बिदाई
संसार से विदाई का
छोड़ कर यह देह
आत्मा ने ली बिदाई
चार कन्धों पर की सवारी
अर्थी पर हो कर सवार चली
अच्छाई बुराई भलाई
के सारे कर्म
के सारे कर्म
साथ ले चली अपने
हर जगह महत्व
देख पालकी का
देख पालकी का
मन ही मन किया नमन
उन सब भागीदारों को
उन सब भागीदारों को
पालकी उठाने वालों को |
आशा