22 फ़रवरी, 2018

प्रश्न अनेक


लगा प्रश्नों का अम्बार 
देखकर आने लगा बुखार 
सोचते विचारते 
बिगड़े कई साल 
अनजान सड़क कंटकों से भरी
जाने कैसे कदम बढ़ने लगे 
न तो कोई कारण उधर जाने का 
ना ही कोई बाट जोहता 
अनेक प्रश्न फैले पाए 
शतरंज की बिसात पर
 होता था एक ही विकल्प 
जीत अथवा हार 
प्रश्न अनेक और उत्तर एक 
प्रश्नों की लम्बी श्रंखला से
सत्य परक तथ्यों के हल 
न था सरल खोजना 
बहुत कठिनाई से
उस तक पहुंच पाते 
प्रश्न बहुत आसान लगते 
लगन धैर्य व् साहस की 
है नितांत आवश्यकता
क्या है जरूरी ?
हर कार्य में सफलता मिले 
पर हारने से पलायन 
करना क्या है आवश्यक ?

आशा




21 फ़रवरी, 2018

बड़ी मछली छोटी को खाती


सृष्टि के इस भव सागर में
बड़ी छोटी विविध रंगों की मछलियाँ
 बड़ी चतुर सुजान अपना भोजन
 छोटी को बनाती  वह बेचारी
 कहीं भी सर अपना  छुपाती 
खोजी निगाहें ढूँढ ही लेतीं 
तब भी उनका पेट न भरता
 दया प्रेम उनमें न होता 
छोटी  सोचती ही रह जातीं
 कैसे करें अपना बचाव
सिर्फ तरकीबें सोचती पर 
पर  व्यर्थ सारे प्रयत्न होते
 कभी किसी नौका का सहारा लेतीं 
सागर की उत्तंग लहरों से  टकरा कर
 नौका खुद ही नष्ट  हो जाती 
यही सच है कि
बड़ी मछली छोटी को निगल जाती  |
आशा