18 अप्रैल, 2020

कोरा कॉपी का पन्ना


कोरा  कापी का कागज़
 खाली स्याही की बोतल 
 पैन नहीं लिखने को 
क्या करू कैसे लिखूं |
ऊपर से रौशनी भी नहीं
 कुछ भी दिखाई नहीं देता
मन  में भाव उमंग लेते   है
लिखने की इच्छा भी बहुत है
पर साधन नहीं जुट पाते हैं |
किस विधा में लिखूं सोच नहीं पाती
भाषा पर पकड़ नहीं मजबूत
मन में भावना  बलवती
यहीं पर मात खा जाती हूँ |
कभी सोचती हूँ कुछ और शौक पालूँ
 कुछ न करने से तो अच्छा है
जितना बने उतना करू
थोड़ा पढूं कुछ तो लिखूं |
पर फिर खुद की कमियाँ
नजर आने लगती है
कोई कार्य अधिक समय तक
 कर नहीं सकती |
मन में उलझने बढ़ने लगती हैं
मैं सोचती कुछ हूँ और करती कुछ और
तभी सफलता से रहती मीलों  दूर
क्या करू इस बढ़ती उम्र के साथ
सामंजस्य स्थापित कर  नहीं पाती |
जानती हूँ सब दिन एक सामान नहीं होते
बीते दिनों को याद करने से क्या लाभ
होता मन में क्षोभ कुछ भी हांसिल नहीं होता
 हाथ रीते ही रह जाते है और दिमाग कुंद |
आशा






बाल कथा





एक बाल कथा –
एक चिड़िया अकेली डाल पर बैठी थी |इन्तजार कर रही थी कब चिड़ा आए और दाना लाए |बहुत समय हो गया वह अभी तक  नहीं आया |अब चिड़िया को चिंता होने लगी |बुरे ख्यालों ने मन को घेरा |न जाने दाने की तलाश में वह कहाँ भटक रहा होगा |किसी बड़े पक्षी ने हमला तो न कर दिया होगा |अचानक एक भजन उसे याद आया
“वह जमाने से क्यूँ डरे जिसके सर पर हाथ प्रभू का”|
फिर थोड़ी देर मन बहलाया अपने बच्चों से मन का हाल बताया |पर फिर से बेचैन होने लगी |वह बार बार ईश्वर को याद करती थी और अपने पति  की कुशलता की फरियाद भगवान से करती थी |तभी देखा वह दूर से आ रहा था |दाना नहीं मिला था |चिड़िया ने सोचा दाना नहीं मिला तो क्या हुआ कल के दाने से गुजारा चला लेंगे |ईश्वर की यही कृपा बहुत है की मुसीबतों  से बचता बचाता वह यहां तक आ तो गया |किसी ने सच कहा है विपरीत परिस्थितियों में ईश्वर ही याद आता है वही सच्चा मददगार होता है |
|आशा

16 अप्रैल, 2020

क्या चाहिए ?




 


न चाँद चाहिए, न सूरज चाहिए ,
चमक के लिए आसमान में  सितारे बहुत है |
शाम के धुधलके  में रात की अन्धकार में   
 रौशनी के लिए जुगनुओं की चमक बहुत है |
द्वार पर  टिमटिमाता  दिया ,घर में लालटेन का  प्रकाश.
 गाँव में रौशनी का यही  सहारा बहुत है |
नहीं चाहिए बिजली,सडकों पर चमचमाती रौशनी
 मन में प्रकाश के लिए बुद्धि का सहारा  बहुत  है |
 शिकवा शिकायत किस लिए , सीधी राह पर  न चलने के लिए,
  बिना बात उलझने का बहाना ही बहुत है |
  अपनों से कैसा  पर्दा, गैरों से मनुहार कैसी   ,
रूठना मनाना किस  लिए प्यार का इजहार बहुत है|
आसमान में उड़ते  परिंदे  गीत गुनगुनाती चिड़िया
स्वतंत्रता के एहसास के लिए अच्छे मौसम का हवाला बहुत है |
आशा