न चाँद चाहिए, न सूरज चाहिए ,
चमक के लिए आसमान में सितारे बहुत है |
शाम के धुधलके में रात की अन्धकार में
रौशनी के लिए जुगनुओं की चमक बहुत है |
द्वार पर टिमटिमाता दिया ,घर में लालटेन का प्रकाश.
गाँव
में रौशनी का यही सहारा बहुत है |
नहीं चाहिए बिजली,सडकों पर चमचमाती रौशनी
मन
में प्रकाश के लिए बुद्धि का सहारा बहुत है |
शिकवा शिकायत किस लिए , सीधी राह पर न चलने के लिए,
बिना बात उलझने का बहाना
ही बहुत है |
अपनों से कैसा पर्दा, गैरों से मनुहार कैसी ,
रूठना मनाना किस लिए प्यार का इजहार बहुत है|
आसमान में उड़ते परिंदे गीत गुनगुनाती चिड़िया
स्वतंत्रता के एहसास के लिए अच्छे मौसम का
हवाला बहुत है |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंअरे वाह ! आजकल तो आपकी कलम कमाल कर रही है ! बहुत ही सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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