31 अक्टूबर, 2020

शरद पूर्णिमा

 

रात की ठंडक बढी

आसमान में जब  चन्दा चमकता

कभी छोटा कभी बड़ा वह बारबार रूप बदलता

पन्द्रह दिन में पूर्ण चन्द्र होता |

नाम कई  रखे  गए उसके

कभी गुरू पूर्णिमा कभी शरद पूर्णिमा 

चाँद कभी चौधवी  का

                                     शरद  ऋतू में जब आती पूनम बड़ा महत्त्व होता  |

ऐसा कहा जाता है 

स्वास्थ्य की दृष्टि  से

 इस रात अमृत की वर्षा होती

 कई रोगों के उपचार में बड़ी सहायक होती |

शरद पूर्णिमा की रात होती जश्न मनाने की

मां सरस्वती की आराधना की

गीत संगीत की महफिल सजती

रात्री जागरण होता नृत्यों का समा बंधता |

आधी रात तक का समय

कैसे बीत जाता पता नहीं चलता

फिर चलता अमृत से भरी खीर पान  का

 केशरिया दूध पीने का |

आज  जब कोरोना की कुदृष्टि है सब ओर

हर जश्न फीका फीका रहा

ना कविता का दौर चला ना ही नृत्य उत्सव हुआ

 बस गाने थोड़े से  सुन पाए |

आशा

 

29 अक्टूबर, 2020

बेचैनी

 


 कोई जब बेचैन हो

कहाँ जाए किससे सलाह लें

यह सिलसिला कब तक चले

यह तक जान न पाए |

मन को वश में कितना रखे

कब तक रखे कैसे रखे

इसकी शिक्षा किससे ले

 यह भी सोच  न पाए |

 एक ही बात दिमाग में रहे

किसी की बात जब तक मानों

सहन शक्ति से ऊपर ना हो

वह अपने हित में हो |

जब किसी पर  क्रोध आए

है दूरी जरूरी  उससे

 मन को जहां  जब चिंता हो

वहां  जाना नहीं जरूरी |

मन की खुशी के लिए

हर वह कार्य किया जाए

जिससे किसी को दुःख न पहुंचे

खुद को भी प्रसन्नता छू पाए |

सारे टोने टोटके हुए बेअसर

मन को समझाने को

अब कोई क्या करे

कहाँ जाए किससे मदद मांगे |

आशा

 

 

 

28 अक्टूबर, 2020

सुबह की धूप


 

                 प्रातः सूर्य देव चले देशाटन को

 हो कर अपने रथ पर सवार

बाल रश्मियाँ बिखरी  हैं हर ओर  

अम्बर हुआ सुनहरा  लाल  |   

 खिली धूप नीलाम्बर में मन भावन

कोहरा छटा है आसमान का  रंग निखरा है 

बादल ने विदा ली है

अब  बहार आई है

पंछी भी हुए चंचल  सचेत

 उड़ते फिरते  करते   किलोल

इस डाल से उस डाल पर |

पेड़ो पर छाई हरियाली

फूल खिले हैं डाली डाली

बगिया महक  रही है सारी

रंग बिरंगे पुष्पों की सुगंघों से |

बिछी  श्वेत पुष्प शैया पारिजात वृक्ष के नीचे

 देखते ही बनती है छटा उसकी
मन  करता वहीं बैठूं उस बगिया में   

दृष्टि पटल पर  समेट उसे  हृदय में रखूँ  

सुबह की धूप का आनंद उठाऊँ |

बच्चे खेलते वहां  झूलते इन झूलों पर

तरह तरह के करतब दिखाते

ऊपर से नीचे आते धूम मचाते

नीचे से ऊपर जाते  फिसल पट्टी से   

खुश होते किलकारी भरते |

                             आशा