कोई जब बेचैन हो
कहाँ जाए किससे सलाह लें
यह सिलसिला कब तक चले
यह तक जान न पाए |
मन को वश में कितना रखे
कब तक रखे कैसे रखे
इसकी शिक्षा किससे ले
यह भी सोच न पाए |
एक ही बात दिमाग में रहे
किसी की बात जब तक मानों
सहन शक्ति से ऊपर ना हो
वह अपने हित में हो |
जब किसी पर क्रोध आए
है दूरी जरूरी उससे
मन को जहां जब चिंता हो
वहां जाना नहीं जरूरी |
मन की खुशी के लिए
हर वह कार्य किया जाए
जिससे किसी को दुःख न पहुंचे
खुद को भी प्रसन्नता छू पाए |
सारे टोने टोटके हुए बेअसर
मन को समझाने को
अब कोई क्या करे
कहाँ जाए किससे मदद मांगे |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 29 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सूचना के लिए दिग्विजय जी |
हटाएंमन के अनुभावों की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह ! बढ़िया रचना ! किसीसे सलाह मांगने के स्थान पर अपनी सोच के अनुसार चलना चाहिए और अपनी सोच को सदैव सकारात्मक रखना चाहिए ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शान्तनु जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंमुझे बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना दिल को छू गई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मधुलिका जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंऐसी स्थिति के लिए बुद्ध का कथन है- अप्प दीपो भव.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिभा जी |
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए शिव कुमार जी |
हटाएंसूचना हेतु आभार मीना जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंआपने तो मन को सँभालने के लिए सुंदर और उपयोगी सीख इसी रचना में दे दी है, अब और कहीं नहीं जाना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंकिसी की बात जब तक मानों
सहन शक्ति से ऊपर ना हो
वह अपने हित में हो |
जब किसी पर क्रोध आए
है दूरी जरूरी उससे
मन को जहां जब चिंता हो
वहां जाना नहीं जरूरी |
Thanks for the comment
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