28 अक्टूबर, 2020

सुबह की धूप


 

                 प्रातः सूर्य देव चले देशाटन को

 हो कर अपने रथ पर सवार

बाल रश्मियाँ बिखरी  हैं हर ओर  

अम्बर हुआ सुनहरा  लाल  |   

 खिली धूप नीलाम्बर में मन भावन

कोहरा छटा है आसमान का  रंग निखरा है 

बादल ने विदा ली है

अब  बहार आई है

पंछी भी हुए चंचल  सचेत

 उड़ते फिरते  करते   किलोल

इस डाल से उस डाल पर |

पेड़ो पर छाई हरियाली

फूल खिले हैं डाली डाली

बगिया महक  रही है सारी

रंग बिरंगे पुष्पों की सुगंघों से |

बिछी  श्वेत पुष्प शैया पारिजात वृक्ष के नीचे

 देखते ही बनती है छटा उसकी
मन  करता वहीं बैठूं उस बगिया में   

दृष्टि पटल पर  समेट उसे  हृदय में रखूँ  

सुबह की धूप का आनंद उठाऊँ |

बच्चे खेलते वहां  झूलते इन झूलों पर

तरह तरह के करतब दिखाते

ऊपर से नीचे आते धूम मचाते

नीचे से ऊपर जाते  फिसल पट्टी से   

खुश होते किलकारी भरते |

                             आशा

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  4. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  5. वाह ! सुन्दर शब्द चित्र मनोरम सुबह का ! मनमोहक रचना !

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