23 मई, 2013

भोला बचपन


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 ममता की छाँव में
परवान चढ़ पल्लवित होता
प्यारा सा भोला सा बचपन 
माँ के दुलार में खोया रहता 
 कुंद के पुष्प सा महकता
मीठी लोरी सुनता बचपन |
प्यार भरी थपकिया पा 
चुपके सेआँखें मूंदता 
सोने का नाटक करता
फिर धीरे से अँखियाँ खोल
माँ को बुद्धू बनाता बचपन |
मधुर मुस्कानअधरों पर ला
मीठी मीठी बातों से
सारी थकान मिटाता 
अपना प्यार जताता
माँ का सबसे प्यारा बैभव |
कभी कभी गुस्सा करता
रूठता मनमानी करता
जब तक बात पूरी ना हो
रो रो घर सर पर उठाता
पर जल्दी से मन भी जाता
बहता निर्मल धारा सा |
बेटी हो या बेटा
शैशव तो शैशव ठहरा
 कोई  फर्क नहीं पड़ता
आँगन में कुहुकता
माँ का प्यार बांटता
उसका  आँचल थाम
ठुमक ठुमक  चलता बचपन |
आशा |



20 मई, 2013

कितना नीरस होता

एक हथोड़ा व एक बांसुरी 
एक साथ रहते 
जीवन कितना गुजर गया
यह तक नहीं सोचते  |
था हथोड़ा कर्मयोगी 
महनतकश  पर हट योगी 
सदा भाव शून्य रहता 
खुद को बहुत समझता |
थी बांसुरी स्वप्न सुन्दरी 
कौमलांगिनी भावों से भरी
मदिर मुस्कान बिखेरती 
स्वप्नों में खोई रहती |
जब भी ठकठक सुनती 
तंद्रा उसकी भंग होती 
आघात मन पर होता 
तभी वह विचार करती |
क्या कोइ स्थान नहीं उसका 
उस कर्मठ के जीवन में 
पर शायद वह सही न थी 
भावनाएं सब कुछ न थीं 
जीवन ऐसे नहीं चलता 
ना ही केवल कर्मठता से |
जो डूबा रहता भावों में 
कल्पना की उड़ानों  में
तब घर घर नहीं रहता 
संधर्ष सदा होता रहता |
यह कैसा संयोग कि 
दौनों साथ साथ रहते 
एक दूसरे को समझते 
आवश्यकताएं जानते 
एक की कर्मठता 
और दूसरे की भावनाएं 
यदि साथ ना होतीं 
जीवन कितना नीरस होता |
आशा