02 मई, 2020

कच्ची सड़क







है दूर तक कच्ची सड़क
पटी हुई पीले पत्तों से
जो भी चलता उस पर
पीले पत्ते गीत गाते गुनगुनाते|
चर चर की  ध्वनि करते
पैरों तले रोंधे जाते
तेज हवा के साथ उड़ते
 पर शिकायत नहीं करते|
सूर्य रश्मियाँ नभ  से झाँकतीं
पगडंडी को नया रूप देतीं
पेड़ों पर आए नव पल्लव
प्रातः काल की  धूप में नहाते
अलग ही नजर आते हरे भरे मखमल से |
प्रातः काल का यह मंजर
आँखों में बस गया  ऐसा
जब भी पलकें बंद होतीं
मन उसी सड़क पर विचरण करता |
कहीं भी जाने का मन न होता
स्वप्न में भी उसी में रमा रहता
स्वप्नों में उसका स्थान हुआ ऐसा
कोई सपना पूरा नहीं होता उसके बिना |
घूमते कदम स्वतः ही उठ् जाते उस ओर
अब तो हो गई  है वह सड़क
एक अहम् स्थान  स्वप्नों को सजाने की 
उसके बिना अधूरा रहता हर सपना |
आशा