22 दिसंबर, 2018

ख़त




ख़त तुम्हारे लिए न होंगे
ख़त तुम्हारे करीब न होंगे 
जब तक हम तुम्हारे न होंगे  
 दौनों जब  हमकदम न होंगे
दूरियां बढ़ती जाएंगी
नजर तक पड़ेगी न उन पर
लिफाफे में जैसे आये थे
वैसे ही रहेंगे खुल न पाएंगे
कभी वे  ख़त पुराने न होंगे 
मन कभी न होगा
 उन् को  हाथ लगाने का 
उनमें अपनेपन की गंध  न होगी 
जब तक हम  दौनों  हम दम न होंगे 
मन में मन की बातें रह जाएंगी 
भाव उजागर न हो पाएंगे|

आशा
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बधाइयां















छोटी बड़ी बातों पर
देना  बधाइयां
हो गई एक प्रथा
आज कल
बधाइ चारो ओर से
लिपट जातीं उनसे
सिमट जाता उनमें ही
सारा प्यार दुलार
है आवश्यक कितना
बधाइयों का तांता
तोहफों का आदान प्रदान
तुम क्या जानो ?
आशा धन दौलत की नहीं
ऊर्जा  प्यार भरे दिल की
जो उत्पन्न  होती
प्रमुख आवश्यकता होती 
एक छोटा सा फूल
 ही काफी होता 
मनोभाव  व्यक्त करने को
दौनों के  लिए
सच तो यह है कि
 देने को बधाई
 कोई तो बहाना चाहिए 
नजदीकियां दिखाने को 
यह नहीं रस्म अदाई 
है जरुरत आज की 
पहले भी थी
 कल भी रहेगी |
आशा

21 दिसंबर, 2018

हाईकू


प्यास न बुझी
खड़ीनिहार रही
खारे जल को
अपार जल 
सागर लबालब
फिर भी खारा
सुकून नहीं
सुबह दोपहर 
एक ही राग
भारी मन से
किया गिला शिकवा
बैर न मिटा
मन में छिपी
यादों की बारातें हैं
हैं सर्द रातें

 मौसम ठंडा 
एक प्याली चाय की 
मन में ऊर्जा

 अकेला नहीं
सर्दी बढाता जाता
 बेग वायु का

सर्द हवा का 
होता जब प्रकोप
पत्ता कांपता


आज ये हाल 
संवेदना है आहात
स्वतंत्र नहीं

जलती ज्वाला
दे रही है बिदाई
बीते कल को

आशा
आशा

19 दिसंबर, 2018

मुस्कान

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  मुस्कान बहुत मंहगी पड़ती
जब दिल से  दुआ न  निकलती
ना शब्दों का आदान प्रदान
केवल अधरों पर मुस्कान |
वह भी केवल दिखावे की
जैसी दिखाई देती वैसी है नहीं
मन से निकली आवाज नहीं
ना ही आत्मीयता  का प्रभाव |
 अधरों में सहमी सिमटी 
 रहती एक  कैदी सी
 पहरा रहता आठों प्रहर
 कितनी लगती  लाचार बेबस |
सब की दृष्टि अलग होती
भोले बचपन की मुस्कान
है कितनी निश्छल निरापद  
मन मोहक छवि बालक की
मन झांकता उसमें से |
 व्यंगबाण पर आती मुस्कान  
मन का कपट झलकाती
किसी की गलतफहमी पर
या किसी की नादानी पर
तभी बहुत मंहगी पड़ती |
यह न जान पाता  कोई
मुस्कान तो मुस्कान है
अपने अंतर की हलचल का
सत्य ही बयान करती |
आशा

मुश्किल है निभाना


मुश्किल है रिश्तों को निभाना
 वे कच्ची डोर से बंधे होते    
जरा से झटके में टूट जाते  
मन को टूटन बहुत खलती है
पर गलती कहाँ से प्रारम्भ हुई
खोज कर देख नहीं पाते
केवल पछतावे के सिवाय
 दुखी होने के अलावा
 कुछ हाथ नहीं आता
रिश्ते फिर से  सुधर नहीं पाते
यदि कोशिश की जाए
आंशिक सुधार होता है 
रिश्तों की चादर में थेगड़े लगे
 स्पष्ट  नजर आते हैं
वह बात नहीं रहती उनमें
जो बनाते समय रही थी
है नहीं आसान 
 टूटे रिश्तों को सवारना
उससे अधिक मुश्किल है
 अपनी कमियों को स्वीकारना
 जब रिश्ते निभा नहीं सकते
फिर पहल किस लिए ?
आशा

16 दिसंबर, 2018

अनोखी दुनिया कविता की

है अनौखी दुनिया कविता की 
दिन में भी तारे दिखाते हैं
भरा पेट होता है फिर भी
भूखे दिखाई देते हैं |
लेखन की भूख
 कभी शांत नहीं होती 
शब्दों के अम्बार लगे रहते
विचार भी कहाँ पीछे रहते
पहले हम पहले हम कह कर
लाइन तोड़ देते हैं 
क्रम में आने का
 इंतज़ार नहीं करते
 मुश्किल फँस जाते
 जब घड़ी इंतज़ार की आती
मन पर नियंत्रण नहीं कर पाते
 बहुत बेचारे हो जाते
शब्दों के जंगल में फंस जाते 
और निकल नहीं पाते 
कभी शब्दों पर भारी विचार 
कभी बाजी पलट जाती 
विचारों की चांदी हो जाती |
आशा