11 दिसंबर, 2021

जीवन एक कठिन पहेली सा


 

कंगन डोरी  हाथों की  छूटी नहीं कि

 गृहस्ती का कार्य प्रारम्भ किया

तब से अब तक एक लम्हां भी नहीं

मिला सांस लेने को |

हाथों की मेंहदी फीकी पड़ी न थी

 ढेर झूठे बर्तनों का देख रहा राह मेरी

भरी आँखों से देखा यह मंजर

 हाय रे मेरी  किस्मत |

आज तक विश्राम के दो पल न मिले

तुम से मन की बातें करने को  

है यह कैसा न्याय प्रभु  

क्या मैं ही मिली थी सब अनुभवों के लिए ?

जीवन की एक  समस्या जब तक निपटती

दूसरी हाथ फैलाए  खड़ी होती

अभी तक अपने लिए चैन की

 श्वास  लेने का भी समय न मिला |

कोई स्वाद नहीं रहा मुंह में  कसेला सा हो गया

 क्या लाभ बीते कल पर दृष्टिपात का

अब वह लौट कर न आएगा

काल का पहिया आगे बढ़ता जाएगा

मन का क्लेश बढ़ा कर ही जाएगा |

जीवन है  एक कठिन  पहेली सा 

 जिसका  हल न मिला अब तक 

अंतिम समय आने तक   

खुद का अस्तित्व  ही भूल जाएगा |

आशा 


10 दिसंबर, 2021

क्षणिकाएं


                                                     जब अमन चैन का हो साया 

तभी लगता है देश हमारा

 भाई चारा और प्रेम से रहें 

तभी  होगा जीवन सफल हमारा |


ज़िंदा रहने का कुछ ऐसा अंदाज रखो 

जो तुम को न समझे उसे नजर अंदाज करो 

उसके प्यार पर प्राण न्योछावर करो 

यदि नफरत करे उस पर ध्यान न दो |


जान लेवा मंहगाई से आम जन  त्रस्त हुए 

दैनिक वेतन भोगी बेचारे  रोटी रोटी को तरसे 

हर बात पर उधार लेने का मन बनाया 

देने वाला दे तो देता पर दस बातें सुनाकर |


बासंती बयार दे रही आवाज 

ऋतू सुहानी है करो सत्कार 

बादल ने की गर्जन तर्जन 

किया स्वागत  ऋतु  राज का |

आशा 





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09 दिसंबर, 2021

मान अभिमान किस लिए


 

मान अभिमान किस लिए

किसके लिए?

किस बात पर गुमान करूं

आखिर कब तक अभिमान करूं

मेरा है क्या ?

जिस पर झूटा गरूर करूं |

 समस्याए कम होने का

नाम नहीं लेतीं

जीवन की उलझनें कम नहीं होतीं

समस्याओं की दुकान लगी है|

 सुलझाने की कितनी भी

 कोशिश करूं

जहां से चलना था वहीं

अटक कर रह गई हूँ |

भाग रहा है समय

 पूरी गति से बिना चेतावनी के

 हाथों से छूटा  जा रहा है

सिक्ता कण सा |

 अब कुछ भी नहीं पास मेरे  

ना ही बस में मेरे 

ईश्वर की कृपा यही है

मुझे कष्ट दिया पर सहन शक्ति भी दी है |

 मस्तिष्क में ऊर्जा 

वही है आज तक 

हूँ पूर्ण सजग

 अवचेतन  नहीं  मैं  |

आशा 

खुली किताब के सारे पन्ने


 

खुली किताब के सारे पन्ने

एक आदि ही पढ़ पाई

क्यूँ कि समय न था

मन मसोस कर रह गई |

जीवन का संग्राम

थमने का नाम नहीं लेता

मन उलझा उलझा रहता

 कितनी बातों को दर किनारे रखता |

कभी ख्याल मन में आता

किससे अपना कष्ट बांटूं

किसे अपना हम राज बनाऊँ

उसे कहीं खोजूं खोजती ही न रह जाऊं |

यूं तो जीवन है सुखी संपन्न

कोई कमीं नहीं मुझको

फिर भी यदि असंतुष्ट रहूँ

किसको दोष दूं |

यही फितरत मन की मुझे

कहीं की भी नहीं रहने नहीं देती

उलझी उलझी सी हैं जिन्दगी

ठीक से जीने नहीं देती |

आशा 

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07 दिसंबर, 2021

तुमहो चंचल चपल विद्युत जैसी

 


हो चंचल चपल

विद्युत की तरह

कभी शांत नहीं होतीं

तुमसे सब हारे |

अपने मन को

बहुत समझाया

पर वह न माना

क्या करती ?

बारम्बार तुमसे उलझता

कितनी बार प्रयत्न किये

पर सब व्यर्थ हुए

तुम्हें न बदलना था

न बदलीं किसी कौने से |

अपनी बातों पर

अडिग रहीं

ना कभी सुधरीं

सभी यत्न विफल रहे |

हार कर मैंने ही

मान ली हार 

अपनी बात मनवाने के लिए 

कदम पीछे हटा लिए |

पर मन में अवश्य

एक  विचार  आया

है व्यर्थ तुम जैसी 

अड़ियल से उलझना

 फिर खुद ही दुखी होना |

वही सलाह है सही   

अपनी राह पर चलो

किसी से मत उलझो

दाएं बाएँ मत देखो |

अब मुझे समझ आया

होगा क्या लाभ

आग से हाथ मिलाने से

खुद ही के हाथ जलाने से |

आशा 

06 दिसंबर, 2021

चाहत उड़ने की


 

चाहत उड़ने की

 उसे उत्साहित करती

तमन्ना होती जाग्रत

रात भर स्वप्न देखती |

 होते  रंगीन पंख तितली जैसे  

 आसपास लग जाते बाहों के

वह तितली सी उड़ना तो चाहती  

पर व्यवधान पसंद न आता उसे |

सारा आसमान हो उसका

कोई सांझा नहीं कर सकता

पर यह तो न्याय नहीं 

शेष सब कहाँ जाएंगे

यह नहीं सोचा उसने |

यही सोच उसका

 उड़ने में बाधक होता

जब भी कोशिश करती  

 कोई न कोई वहां होता |

वह मन मार कर रह जाती

उसकी चाहत

कभी  भी पूरी न हो पाती 

 सोच उसे कभी भी

आगे न आने देता

जहां खड़ी होती  थी

वहीं सिमट  कर रह जाती थी |

मन को झटका लगता

सोचती उसमें क्या कमी थी

जो उसे आगे न आने देती थी

 उसके पैर बाँध लेती थी |

दिल उदार होना चाहिए

केवल अपना ही सोचे दूसरों का नहीं

वह ईश्वर की नजरों से बच नहीं पाता

यही आगे बढ़ने में बाधक होता |

आशा 

हाइकु

 


जीवन गीत

मधुर है संगीत

प्यारा लगता

 

उदासी नहीं

प्रसन्न है चेहरा  

भला  लगता

 

सुरति नहीं

जाने कब देखी है 

तेरी  झलक


 

मन का मीत

प्यारा लगने लगा

मन में बसा

 

कहना क्या है

मन में बस गया

तेरा चेहरा

 

प्यार दुलार 

सभी स्थानों पर है

सोचा न था


शायरी लिखी 

गीत गजलें पढ़ी 

 तुष्टि न हुई  


 मन चाहता  

मोहक लगता है 

अर्ध रात्रि में

 

ख़याल  नेक

समझ आए यदि

होता आल्हाद


दूर सड़क

चमका है  आदित्य

भोर  बेला में  



    

आशा    

 

05 दिसंबर, 2021

कठिन होती अभिव्यक्ति


 

लिखने  होते जब कभी कई पत्र

 सोच सोच कर थक जाते थे

लिखना इतना होता था जटिल कि  

भाव शब्दों में व्यक्त न कर पाते थे |

भावों के जंगल में भटक जाते थे

मन की बातें  न कह पाते थे

 जब भी कोशिश करते थे लिखने की

समय मुठ्ठी से खसक जाता था |

समस्या यथावत रह जाती थी

हार कर नक़ल के लिए

किसी  पुस्तक का सहारा लेते थे

नक़ल से  भी संतुष्टि न मिलाती थी |

तब  किसी मित्र से लिखवाते थे

उसकी बैसाखी का सहारा लेते थे

पर यह भी उचित नहीं लगता था

यह सोच मन को कष्ट देता था |

विचार मेरे व शब्द किसी और के

मन को संतुष्ट न कर पाते थे

यथासंभव कोशिश करते रहने से

 सफलता तो मिली भावों की अभिव्यक्ति में |

मन का मोर नाचने लगा

 मन के विचार स्पष्ट करने  में

 सफलता की कोशिश ही रंग लाई

  प्रयत्नों के बाद भाषा को सजाने सवारने में |

आशा