इंतज़ार आज है रक्षा बंधन का
बंधन राखी का भार
कभी न था
मन में सदा रहा
सम्मान उसका
भाई बहन के
अंतस में |
जब बहना ससुराल गई पहली
बार
बेचैन हुआ भाई का मन
भेजा तार कब आओगी
मैं लेने आऊँ या
आजाओगी |
जब तक बात पक्की न
हुई
ख्यालों का भण्डार भरता रहा
अब तक न समाचार ही
आया न राखी
मन की तैयारी खाने लगी हिचकोले |
मन का विश्वास तब भी
न डगमगाया
इन्तजार में सारा
दिन बीता
फिर बुरे ख्यालों ने
घेरा
रात कटी तारे गिन गिन
सुबह जब उठा बहिन को समक्ष पा
दिया धन्यवाद प्रभु को |
घुली मिठास घेवर
मिठाई में उस के आने से
बहार घर में लौट आई बहिन के आने से
बड़ी राखी की जिद्द
अब तक न भूला था
बड़ी राखी का भूत न
उतरा था सर से|
आशा