मुंह पर शब्द
आकर रुके
क्या कारण रहा
किसी से छुपा नहीं
है
पर बहुत स्पष्ट भी नहीं |
मन के भाव मुख से निकले
यह भी सत्य नहीं
यह कैसे जानकारी मिली
कहाँ तक पहुंची सोच
की इन्तहा हुई |
मुझे सच में गौरव हुआ प्राप्त
या पीछे से धक्का दिया
गया
एक प्रमाण पत्र के
लिए
जो था यथेष्ट मेरे लिये |
प्रसन्न मेरा मन था
यही क्या कम था
पर एक अनकहा सच
मेरा पीछा कर रहा था |
मैं ऐसा व्यक्तित्व थी वहां
जिससे सब तुलना करते
थे
वैर भाव मन में रखते थे
यह बाद में जाना |
अन्य जगह जब पहुंची
क्यूँ हुआ था ऐसा तब
जाना
जब किसी के मुंह से
निकला
बड़े लोग बड़ी बात |
इनसे तुलना कैसी कब तक
हम भी कम नहीं
किसी से
पर किसी के बल नहीं
सच में खुद्दारी हम
में है इतनी जो इसमें भी न थी |
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए आलोक जी |
वाह ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment 3
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
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