ताका झांकी पेड़ों से
तारों से गलबहियां होती
चांदनी चंचल बहकती |
तब भी मन नहीं भरता
सोचता किसे चुने
झील नदी या ताल
या समुंदर की लहरों को |
जुही रात में महकती
नवोढ़ा श्रृंगार करती
राह में पलकें बिछाए
पर होती निगाहें रीती |
चाँद तो आया भी
पर वे न आये
रात बीती सारी
यूं ही राह देखते |
प्रश्न उठा मन में
चाँद
क्यूं लगता अपना
वे रहे पराये
उसे अपना न पाए |
आशा