09 सितंबर, 2023

क्या खोजती निगाहें तेरी

 क्या खोजे निगाहें तेरी 

किसे ढूँढें पर अभी तक 

कोई समाचार नहीं  उसका 

कहाँ राह में भटक गईं 

किसी से पूंछा तो होता 

अब तक यहाँ पहुँच ही जातीं 

कभी सोचा नहीं तुम राह भूल जाओगी 

मैंने तो कहा था किसी को लेने भेजूं 

 अपने को सक्षम समझा 

और  उसने इनकार किया 

धीरे से कोशिश की जब 

वह  सफल हुई 

पहुंची अपने गंतव्य तक |

आशा सक्सेना 


04 सितंबर, 2023

आए हो तो जाने की जल्दी क्या है

 आए हो तो जाने की ज़िद ना करो

यह कोई बात नहीं कि

 तुम मेरी भी ना सुनो

मुझे यूँँ ही बहका दो अपनी बातों में |

क्या राह भूल गए तुम

या तुमको किसी से

लगाव ना रहा यहाँ

केवल व्यवहार सतही रहा

मैंने कितनी कोशिश की

पुरानी यादों में तुम्हें व्यस्त करने की  

जब भी बीती यादें आईं

इधर उधर की बातों में उलझे रहे |

तुमने कभी सोचा नहीं

 हम क्या लगते हैंं तुम्हारे

किस पर आश्रित हैं सारे |

आज तक कोई पत्र ना लिखा

ना ही समाचार भेजा

बहका दिया बच्चों की तरह

मन को बहुत उदास किया |

क्या है यह न्याय तुम्हारा

हमको कुछ ना समझा

अन्यों की महफिल में

बहुत दूर किया सबसे हमको |

आशा 

मेरा वजूद

 

सुहानी रात में अकेले सड़क पर घूमना

मुझे कम ही पसंद आता

पर किसी का साथ पाकर 

मन में उत्साह भर आगे बढ़ना चाहता |

हर बार की तरह मैंने कुछ आगे ना देखा

न ही पीछे की ओर मुड़ कर देखा 

अपना अस्तित्व ही खो दिया |

अब मन पछता रहा है यह मैंने क्या किया

अब तक स्वप्नों में खोई रही

 अपने आप को स्वप्नों में खो कर

नही कुछ पाया मैंने |

अपने मन को और दुःख पहुँँचाया है

अपने वजूद को बहुत सम्हाल कर रखा था

अब हुआ वह दूर मुझ से

अब दुखी हुई बेगानी हुई अपने वजूद को खो कर

मुझको कोई जानता नहीं पहचानता नहीं

आज के समाज में |

यही दुःख मुझे अब सालने लगा है

अब मैं अंतरमुखी होती जा रही हूँ

ना किसी से मिलने जुलने का मन ही होता

एकांतवास की इच्छा बलवती हो उठी है |

आशा सक्सेना 

03 सितंबर, 2023

स्वप्न भरे मस्तिष्क में

 

स्वप्न भरे मस्तिष्क में होता जमाव  ऐस

व्यस्त हो जाती उनकाअर्थ निकालने में

किसी हद तक पहुँच भी जाती

 अर्थों का सार निकालने में |

जो मुझे पसंद आते उनको समेट लेती

अपने मन के किसी कौने में

किसी को भी जानने  नहीं देती

मेरे मस्तिष्क में क्या चल रहा है

इससे मुझे लाभ होगा या हानि  |

या कुछ भी प्राप्त नहीं होगा

बिना किसी की सही  सलाह के

या अपने तक ही सीमित होती

सीधी राह चल कर बहुत कुछ हाँसिल करती

अपनी बुद्धि को स्वच्छ और परिमार्जित रखती |

यही चाह थी मेरी जिससे  मैंने बहुत  कुछ सीखा

अपने को संतुलित किये रहती कभी धेर्य नहीं खोती

यही सीखा है मैंने किसी कार्य की जल्दी नहीं की

मुझे  आत्मनिर्भरता से बहुत बल मिलता |

किसी की गरज करनी नहीं पड़ती

अपना सोचा किया किसी पर नहीं थोपा

नाही किसी पर आश्रित रही स्वयं पर ही हुई निर्भर

यही हल निकाला मैंने स्वप्नों के संग्रह से |