मेरी सामान्य सी जिन्दगी 
जब देखी पास  से 
दिखी बिखरी हुई दूर से 
मन पास जाने का ना हुआ |
पहुँचते गए फिर भी वहीं 
किसी ने रोका नहीं 
नही यह पूछा 
यहाँ किस लिये आए किससे मिलने  |
पर जबाब ना था पास मेरे 
उसने मुंह नीचा किया ना दिया उत्तर 
देखी सामान्य सी लड़की पर मनोबल था ग़जब का 
बैठी चटाई पर कुछ काम कर रही थी |
उसने पूछा किससे  मिलना है 
यहाँ आए कैसे क्यों  किस लिए 
पहले झिझक हुई जवाब देने मैं 
फिर कुछ सोचा और कहा तुमसे |
है मेरे पास क्या  हूँ सामान्य सी लड़की 
मैंने बाहरी दुनिया तक न देखी 
तुम्हें कहाँ ले जाती किस से मिलवाती 
यह छोटा सा घर है, यही दुनिया है मेरी |
दीन दुनियाँ से है मोह नहीं  
है मेरा जीवन जंजीर से बंधा 
बन्धक नहीं  हूँ यहाँ पर , अपनी मन मर्ज़ी की करती हूँ 
मैं तुम्हारी नहीं हूँ, सामान्य जीवन जी रही  हूँ |
हाँ जीवन में बड़ी भूल की है मैंने
 किसी का कहना नहीं माना है  ,
अपना दिल तुम्हें दिया है यहीं रहने के लिए
  तुम्हारे इशारे पर चलने
के लिए |
तुम  सोचों मैं कहाँ रहूँ,किसके पास रहूँ
तुम्हारे पास भी मेरे लिए कोई जगह नहीं 
मेरा भी हक़ है  तुम्हारे साथ रहने के लिए 
सामान्य जिन्दगी जीने का हक़ है मुझे भी |
तुम किस लिए दखल देते हो ,मेरी जिन्दगी मैं 
हूँ सामान्य सी लड़की अपने अधिकारों का ज्ञान है मुझे 
मेरे  अधिकारों को छीन न पाओगे चाहे जितना पछताओगे 
चाहे कितनी भी कोशिश कर लो मेरा वजूद मिटा न पाओगे|आशा सक्सेना