है ऐसा क्या
उन यादों में
स्वप्नों में भी
यादों से बाहर
न निकल पाई |
लाखों जतन किये
सब हुए व्यर्थ
मैं ना खुद सम्हली
न किसी को
उभरने दिया |
जितनी भी कोशिश की
सब व्यर्थ हो गई
यादों का दलदल
पार न कर पाई
उसी में डूबती
उतराती रही |
किसी ने जब
हाथ बढाया
बचाने के किये
झटका हाथ |
फिर से वहीं
डूबती रह गईं
कोशिश का मन
अब न हुआ
उसमें ही खो गई |
यही यादें बनी
जीने का संबल मेरा
कहाँ समय बीता
अब याद नहीं |
आशा