कई रंगों में सराबोर गाँव का मेला
मेले में हिंडोला
बैठ कर उस पर जो आनंद मिलता था
खींच ले जाती उस ओर
आज भी मेले लगते हैं
बड़े झूले भी होते हैं
पर वह बात कहाँ जो थी हिंडोले में|
चक्की ,हाथी ,सेठ ,सेठानी
पीपड़ी बांसुरी और फुग्गे
मचलते बच्चे उन्हें पाने को
पा कर उन्हें जो सुख मिलता था
वह अब कहाँ|
आज भी खिलौने होते हैं
चलते हैं बोलते हैं
बहुत मंहगे भी होते हैं
पर थोड़ी देर खेल फेंक दिए जाते हैं
उनमे वह बात कहाँ
थी जो मिट्टी के खिलौनों में |
पा कर उन्हें
बचपन फूला ना समाता था
क्या वह बचपना था
या था महत्व हर उस वस्तु का
जो बहुत प्रयत्न के बाद
उपलब्ध हो पाती थी
बड़े जतन से सहेजी जाती थी |
आशा
मेले में हिंडोला
बैठ कर उस पर जो आनंद मिलता था
आज भी यादों में समाया हुआ|
चूं -चूं चरक चूं
आवाज उसके चलने कीचूं -चूं चरक चूं
खींच ले जाती उस ओर
आज भी मेले लगते हैं
बड़े झूले भी होते हैं
पर वह बात कहाँ जो थी हिंडोले में|
चक्की ,हाथी ,सेठ ,सेठानी
पीपड़ी बांसुरी और फुग्गे
मचलते बच्चे उन्हें पाने को
पा कर उन्हें जो सुख मिलता था
वह अब कहाँ|
आज भी खिलौने होते हैं
चलते हैं बोलते हैं
बहुत मंहगे भी होते हैं
पर थोड़ी देर खेल फेंक दिए जाते हैं
उनमे वह बात कहाँ
थी जो मिट्टी के खिलौनों में |
पा कर उन्हें
बचपन फूला ना समाता था
क्या वह बचपना था
या था महत्व हर उस वस्तु का
जो बहुत प्रयत्न के बाद
उपलब्ध हो पाती थी
बड़े जतन से सहेजी जाती थी |
आशा