25 अप्रैल, 2015

छाँव की तलाश में



पतझड़ का मौसम के लिए चित्र परिणाम
एक अकेला बियावान में
खोज रहा
पल दो पल की छाँव
है थका हुआ उत्साह रहित
 मंजिल से अनजान
वेग  वायु का  झेल रहा
 संतुलन कभी खोता
फिर सम्हलता
है पतझड़ का आलम ऐसा
खड़े ठूंठ पर्ण विहीन
धरा पर पसरे  पीत पर्ण
सूखे साखे जल स्त्रोत  
सब ने नकार दिया  
दो बूंद जल तक न मिला
कंठ सूखने लगा
सांस रुकती सी लगती
क्या करे वह श्री विहीन
जूझ रहा है खुद से
आस पास के हालात से
छाँव की तलाश में |
आशा

24 अप्रैल, 2015

उम्र की ढलान पर


तिल तिल क्षय होता जीवन
घटती जातीं  साँसें
नयन व्याकुल रहते फिर भी
उसकी आहट पाने को
अनजाने में हुई भूल से  
ठेस उसे पहुंची गहरी
राह अवरुद्ध  ना कर पाईं
मिन्नतें अनगिनत भी
वह रुका नहीं चला  गया
खोज खोज के हारी
जाने कहाँ खो गया
दुनिया की चकाचौंध में
हुआ दृष्टि  से ओझिल
पर दिल से दूर नहीं
हर क्षण याद उसकी
बेकल किये रहती है
कैसे मन को समझाऊँ
समझ नहीं पाती
हर आहट दरवाजे की
उसी की नजर आती  
वह ना आया आज तक
पलट कर भी न देखा
घाव नासूर होने लगे
उम्र की ढलान पर |
आशा


22 अप्रैल, 2015

पारा पारा हो गया


पा कर समक्ष उसे 

दिल बल्लियों उछला

बाहों की ऊष्मा पा

वह पारा पारा हो गया |

 चाहा तो बहुत था

कि ना आगे बढ़े

पर रुक न सका

अनियंत्रित हुआ

फिर फिसल गया

दिल के हाथों विवश

 पारे सा लुढ़कता गया

हाथों से निकल गया

पारा पारा हो गया |

आशा



20 अप्रैल, 2015

मिलाएं हाथ

 
नभ जल थल एक साथ 
मिलाएं  हाथ
उर्मियाँ सागर की शोभा 
प्रिय  हैं उसे
हरियाली धरा की साथी 
नयनाभिराम लगे
उड़ते परिंदे व्योम में
स्पंदित करें 
वाणी मुखर उनकी 
सुरांजलि दे  
सृष्टि का साम्राज्य अधूरा
बिना उनके
मन बंजारा चाहता कुछ पल 
ठहरने को
प्यार के पल जीने की चाह उसे
बाधित करे

अगर रुका बंजारा न रहेगा
स्थिर तो होगा |

आशा