28 नवंबर, 2020

नीला फूल



आँगन में एक फूल खिला जो  

जंगल से अस्वीकारा गया  

है रंग रूप इतना सजीला  

मन को मोह रह |

 रंग नीला है  उसका  आसमान सा

प्याले सा  दिखाई देता है

लगता है चाय छान लूं उसमें

अधरों से लगालूँ उसको |

जब मिठास मस्तिष्क में घुल जाए

 मन  से सहेजूँ उसे

बरसों बरस याद रखूँ मिठास को 

भुला नहीं पाऊं |

आशा

 

27 नवंबर, 2020

मैं मानव हूँ


 


                                      मैं मानव हूँ दानव नहीं

सम्वेदनाओं से भरा हुआ हूँ

मुझे भी कष्ट होता है

किसी को व्यथित देख |

व्यथा का कारण जान  

अनजान नहीं रह सकता

हल उसका खोज कर

कुछ तो सुकून दे ही  सकता हूँ |

मेरी भूलों पर होता है

  पश्च्याताप मुझे भी

दोष निवारण के लिए प्यार बांटता हूँ

सब से अलग  नहीं हूँ  |

मैं मनुज हूँ पाषाण नहीं 

हर समस्या को समझता हूँ

 निदान की कोशिश भी करता हूँ 

हार मान नहीं सकता |

आशा

 

26 नवंबर, 2020

सूर्य


 


सात अश्वों पर हो कर सवार

चलदिया सूर्य देशाटन को

एक ही राह पर चला

मार्ग से बिचलित न हुआ |

यही है विशेषता उसकी

जिसने भी अनुकरण किया

जीवन सफल हुआ उसका

 इसी  मन्त्र ने  सफलता का दामन छुआ  |

अपनी  ऊष्मा से सभी में जान भरी

कितनों को जीवन दान दिया

तुम्हारी रश्मियों की छुअन ने 

पुष्पों को नव जीवन दिया |

आशा


25 नवंबर, 2020

कोरोना



                                         कोरोना आया बताए बिना  

पंख फैलाकर उड़ा बिना पंख

मटियामेट कर गया जीवन को

सामान्य जन जीवन अस्तव्यस्त हुआ |

फिर लौट कर मुंह चिढाया

न कहा अलविदा फिर से हाबी हुआ

शायद जाने वाला मार्ग भूला |

महामारी जैसे शब्द से

अब तो नफरत सी  हो गई है

पहले तो कभी सुना नहीं था

हाँ किताब में जरूर  पढ़ा था |

है इसका इतना विकराल रूप

स्वप्न में भी कल्पना न थी

 ऐसे दहशत भरे दिनों की

 जाने कितने मरे सही आंकड़ा नहीं मालूम

 शेष  भोग रहे त्रासदी इस महामारी की |

प्रभू   परीक्षा ले रहा  धरती के  निवासियों की

कितनी प्रगति की है चिकित्सा के क्षेत्र में

 कोई निवारण का स्त्रोत खोजा नहीं है

केवल समाचार  ही सुने  वेक्सीन आने के |

आशा