14 मई, 2021

जीवन की डगर


 

  कठिन ऊबड़ खाबड़  है जीवन की डगर

 काँटों से  भरी है हुआ चलना दूभर

पैरों में चुभे कंटक  इतने गहरे कि

निकालना सरल नहीं कष्ट इतने कि सहे नहीं जाते |

होती  रूह कम्पित  कंटक निकालने में

 आँखें भर भर आतीं धूमिल होतीं कष्ट सहने में

 दुखित होता पर फिर लगता यही लिखा है प्रारब्ध में

  जीवन है एक छलावा इससे दूर  नहीं हो  सकते

जितनी जल्दी हो अपने कर्तव्य पूरे करना चाहते |

पर उनकी पूरी  सूची समाप्त नहीं होती  

पहली पूरी होते न होते दूसरी दिखाई दे जाती है

फिर भी  मुंह मोड़ना नहीं चाहता अंतस  कर्तव्यों  से  

  सोचती हूँ क्या अपने अधिकारों को पा लिया मैंने |

सोचते हुए अधर में लटकता  सोच अधूरा ही रहता 

न कर्तव्यों का अंत होता न अधिकारों की मांग का  

 एक कंटक निकल कर कुछ सुकून तो देता

पर इतने घाव सिमटे हैं दिल में कि

मुक्ति  ही नहीं मिलती जाने कब ठीक होंगे

सामान्य सा जीवन हो पाएगा  |

अब छोड़ दिया  उलझनों को  

परमपिता परमेश्वर के हाथों में

खुद को भी  समेट  लिया जीवन के प्रपंचों से दूर

  भक्ति का मार्ग चुना है  निर्भय कंटकों से दूर |

आशा  

 

13 मई, 2021

असहिष्णुता


 

बहती गंगा

है जल नदिया का 

शुद्ध और पवित्र

             आम आदमीं              

संचित रख उसे

  समय पर   

उपयोग करते

आस्था  के नाम  

मंदिर में  रखते

आवे जमजम सा

 चाही  जगह

 उपयोग करते

 शुद्धि के लिए

 पवित्र जल जान  

मैंने सोचा जल को

पूजा  जाता है

 महत्व दिया जाता

रूप आस्था का  

दृष्टिगत होता है    

हर धर्म में

एक पवित्र ग्रन्थ 

शुद्ध जल है   

 जिन  पर  आस्था हो

पूजे जाते हैं

है सवाल आस्था का

ना कि धर्मों का

फिर हर समय 

 झगड़ते  क्यूँ  

धर्म के नाम पर

 पढ़ा लिखा   है  

किस धार्मिक  ग्रन्थ में    

मन मुटाव  

दो धर्मों में होता बैर  

भेद दिलों में  

 है कहाँ  समन्वय

 दो दिलों में

  रहा  कष्ट मन को |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

11 मई, 2021

है कैसी रीत

है कैसी रीत

 नश्वर जगत की  

चाहो जिसको  

दूर हो कर रहे

अधिक पास आता   

आने लगता   

 कोई युक्ति  नहीं है

दूर रहने  की   

 उससे बचने  की

जिसे चाहते

रहे  मेरे  पास ही 

करीब मेरे      

उसी से  दूर होते

दिल टूटता 

 मन चोटिल होता    

कब किसकी

 मृत्यु  हो जाएगी

इस नश्वर 

  पञ्च तत्व  निर्मित

 तन से मुक्त

आत्मा कहाँ जाएगी   

  न जान पाया

तीर में तुक्का लगा

जानकार कहला

 खुद को जान  

 आसानी से  कहता

बुलावा आया  

उम्र पूरी होते ही 

 जाना ही है 

 कोई तो  सीमा  होगी  

 अधूरा  ज्ञान        

सोच की परीक्षा  में  

असफल था  |

इस में नया क्या है?

मन  पर कितना 

हुआ असर 

यह भी नहीं सोचा |

आशा 

  

 

 

 

 

  

09 मई, 2021

बेवजह बहस बाजी

 


कुछ कहा नहीं कुछ सूना नहीं  

फिर बहस बाजी  किस लिए

जिस बात से सारोकार नहीं

फिर बहस उसी पर क्यूँ   |

मन दुखी हो जाता है

 यह प्रवृत्ति देख कर

जिस रास्ते जाना नहीं  

उस ओर रुख क्यूँ ?

कोई सही निष्कर्ष नहीं निकल पाता

उलझनें  बढ़ती जातीं

कभी दूर नहीं होतीं

उन की संख्या बढ़ती भी है

 पर एक सीमा तक |

फिर भी मन में

कुछ बेचैनी शेष रह जाती है

पर  मन जरूर  हल्का हो जाता है  |

उसका पता पूंछने से लाभ क्या

मन को चोटिल कर् जाती वह बात

  जानने के बाद जिस पर अनावश्यक बहस हो

दूध का दूध पानी का पानी न हो |

  

आशा