है कैसी रीत
नश्वर जगत की
चाहो जिसको
दूर हो कर रहे
अधिक पास आता
आने लगता
कोई युक्ति
नहीं है
दूर रहने की
उससे बचने
की
जिसे चाहते
रहे मेरे पास ही
करीब मेरे
उसी से दूर होते
दिल टूटता
मन चोटिल होता
कब किसकी
मृत्यु हो जाएगी
इस नश्वर
पञ्च तत्व
निर्मित
तन से मुक्त
आत्मा कहाँ जाएगी
न जान पाया
तीर में तुक्का लगा
जानकार कहला
खुद को जान
आसानी से कहता
बुलावा आया
उम्र पूरी होते ही
जाना ही है
कोई तो सीमा होगी
अधूरा ज्ञान
सोच की परीक्षा में
असफल था |
इस में नया क्या है?
मन पर कितना
हुआ असर
यह भी नहीं सोचा |
आशा
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हर समय जीवन मृत्यु की गणना में क्यों लिप्त रहना ! जो अपने हाथ में नहीं उस पर इतना चिंतन भी क्यों ! जो होना होगा जब होना होगा अपने आप हो जाएगा ! तब कोई चिंतन, कोई मनन काम नहीं आयेगा ! इसलिए जो पल हाथ में हैं उन्हें जी भर कर एन्जॉय करना चाहिए !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात|सही कहा है तुमने |
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (११ -०५ -२०२१) को 'कुछ दिनों के लिए टीवी पर बंद कर दीजिए'(चर्चा अंक ४०६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत
जवाब देंहटाएं