11 मई, 2021

है कैसी रीत

है कैसी रीत

 नश्वर जगत की  

चाहो जिसको  

दूर हो कर रहे

अधिक पास आता   

आने लगता   

 कोई युक्ति  नहीं है

दूर रहने  की   

 उससे बचने  की

जिसे चाहते

रहे  मेरे  पास ही 

करीब मेरे      

उसी से  दूर होते

दिल टूटता 

 मन चोटिल होता    

कब किसकी

 मृत्यु  हो जाएगी

इस नश्वर 

  पञ्च तत्व  निर्मित

 तन से मुक्त

आत्मा कहाँ जाएगी   

  न जान पाया

तीर में तुक्का लगा

जानकार कहला

 खुद को जान  

 आसानी से  कहता

बुलावा आया  

उम्र पूरी होते ही 

 जाना ही है 

 कोई तो  सीमा  होगी  

 अधूरा  ज्ञान        

सोच की परीक्षा  में  

असफल था  |

इस में नया क्या है?

मन  पर कितना 

हुआ असर 

यह भी नहीं सोचा |

आशा 

  

 

 

 

 

  

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  2. हर समय जीवन मृत्यु की गणना में क्यों लिप्त रहना ! जो अपने हाथ में नहीं उस पर इतना चिंतन भी क्यों ! जो होना होगा जब होना होगा अपने आप हो जाएगा ! तब कोई चिंतन, कोई मनन काम नहीं आयेगा ! इसलिए जो पल हाथ में हैं उन्हें जी भर कर एन्जॉय करना चाहिए !

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    उत्तर
    1. सुप्रभात|सही कहा है तुमने |
      धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (११ -०५ -२०२१) को 'कुछ दिनों के लिए टीवी पर बंद कर दीजिए'(चर्चा अंक ४०६३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |

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  4. सुप्रभात
    धन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |

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