15 नवंबर, 2014

लौटाई बरात




तारों की बरात सजती रही
चाँद सा दूल्हा न सज पाया
घोडी चढ़ा पर बरात न गई
दुलहन बिनब्याही ही रही 
कारण से अनजान थे जो
सच से थे वे दूर बहुत
असली बात न जान पाए
फिकरेबाजी करते रहे
सर पर पगड़ी मूंछों पर ताव 
मांग  इतनी तगड़ी थी
दंभ भरी आवाज थी 
सारी फसाद की जड़ था
दूल्हे का पिता वही था
पर लाठी बेआवाज थी
मांग पूरी न हो पाई
शादी की बात कहाँ से आई
 लौट रही बरात थी
बिन व्याही दुलहन खड़ी
पुलिस की दविश पडी
हवालात की कोठारी खुली
अब ना वह अकड़ रही
 और न मूछों पर ताव
जमानत तक के लाले पड़े
मच गया कोहराम
पर गर्व पिता को था बेटी पर
जो जूझी दहेज़ के दानव से
अंत में विजयी   हुई
इस समाज की कुरीति से |

13 नवंबर, 2014

संयम वाणी का



कटु भाषण तीखे प्रहार
जिव्हा की पैनी धार
हो जाती जब  बेलगाम
चैन मन का हरती
मृदु भाषण मीठी मुस्कान
दुखियों के दुःख हरती
जो भी बोलो तोल मोल कर
अनर्गल शब्दों से परहेज कर
मान हनन से बचे रहोगे
शुभ आशीष संचित करोगे
जैसा बोया   वही काटोगे
यही यदि  स्मृति में हो 
 शान्ति के पुरोधा बनोगे
हर शब्द का अपना महत्व है
वेशकीमती है वह भी  
सोची समझी चयनित भाषा
होती भावों का भण्डार
गैरों को भी अपना लेती
व्यक्तित्व में आता निखार
संयम वाणी का
सुबुद्धि का परिचायक होता
सुख शान्ति का मानक होता 
मन को अपार शान्ति देता |
आशा


11 नवंबर, 2014

क्यूं ?


आज मुझे ब्लॉग पर आए पूरे पांच  वर्ष हो गए हैं |अतः आज मेरे ब्लॉग की सालगिरह है |
 
गागर में सागर भर लाया
  फिर यह प्यास क्यूं  ?
सारी खुशियाँ समेत लाया
फिर भी उदास क्यूं ?

बढ़ा होटल उत्तम भोजन

फिर भी भूखा क्यूं ?


कारण एक समझ आया 


 साथ न लाया मन को 


तभी तो है यह उदासी 


यदि वह आता यह न आती |
आशा