20 मई, 2017

आइना



है वह आइना तेरा
हर अक्स का हिसाब रखता है
तू चाहे याद रखे न रखे
उसमें जीवंत बना रहता है
बिना उसकी अनुमति लिए
जब बाहर झाँकता है
चाहे कोई भी मुखौटा लगा ले
बेजान नजर आता है
यही तो है कमाल उसका
हर भाव की एक एक लकीर
उसमें उभर कर आती है
तू चाहे या न चाहे
मन की हर बात वहाँ पर
  तस्वीर सी छप जाती है
चाहे तू लाख छिपाए
तेरे मन के भावों की
परत परत खुल जाती है
दोनों हो अनुपूरक
एक दूसरे के बिना अधूरे
है वह आइना तेरे मन का
यह तू क्यूँ भूला |


आशा


17 मई, 2017

आदत वृद्धावस्था की





एक किस्सा पुराना
बारबार उसे दोहराना
है वृद्धावस्था का
अन्दाज पुराना
कोई सुने या न सुने
मजा आता है
उसे जबरन सुनाने में
अब तो आदत सी
हो गई है
एक ही बात
दस दस बार
दोहराने की
हर बात पर अपनी 

मनमानी करने की
जिद्द ठान लेने की
सही है की
मोहर लगा देने की
कोई हँसे या न हँसे
खुद ठहाके लगाने की |



आशा