29 जनवरी, 2011

विडम्बना

मैं रवि रहता व्यस्त पर हित में ,
कुछ तो नत मस्तक होते
करते प्रणाम मुझको
पर फिर भी लगती कहीं कमी
यही विचार आता मन में
वह प्यार मुझे नहीं मिलता
जो वह पा जाता है
है अस्तित्व उसका जब कि
मेरे ही प्रकाश से |
होता सुशोभित वह
चंद्रमौलि के मस्तक पर
सिर रहता गर्व से
उन्नत उसका |
जब भी चर्चा में आता
सौंदर्य किसी का,
उससे ही
तुलना की जाती |
त्यौहारों पर तो अक्सर
रहता है वह केंद्र बिंदु
कई व्रत खोले जाते हैं
उसके ही दर्शन कर |
इने गिने ही होते हैं
जो करते प्रणाम मुझको
वह भी किसी कारण वश
यूँ कोई नहीं फटकता
आस पास मेरे
जाड़ों के मौसम में
उष्मा से मेरी
वे राहत तो पाते हैं
पर वह महत्व नहीं देते
जो देते हैं उसे |
वह अपनी कलाओं से
करता मंत्र मुग्ध सबको
कृष्ण गोपिकाओं की तरह
तारिकाएं रहती निकट उसके
लगता रास रचा रही हैं
और उसे रिझा रही हैं |
इतने बड़े संसार में
मैं हूँ कितना अकेला
फिर लगने लगता है
महत्त्व मिले या ना मिले
क्या होता है
मेरा जन्म ही हुआ है
पर हित के लिए |

आशा

27 जनवरी, 2011

बहुत साम्य दिखता है

बहुत साम्य दिखता है
सागर में और तुझ में
कई बार सोचती हूँ
कैसे समझ पाऊँ तुझे |
सागर सी गहराई तुझ में
मन भरा हुआ विचारों से
उन्हें समझना
बहुत कठिन है
थाह तुम्हारी पाऊँ कैसे |
पाना थाह सागर की
फिर भी सरल हो सकती है
पर तुझे समझ पाना
है बहुत कठिन |
थाह तेरे मन की पाना
और उसके अनुकूल
ढालना खुद को
है उससे भी कठिन |
मुझे तो सागर में और तुझ में
बहुत समानता दिखती है
सागर शांत रहता है
गहन गंभीर दिखता है |
पर जब वह उग्र होता है
उसके स्वभाव को
कुछ तो समझा जा सकता है
किया जा सकता है
कुछ संयत |
उसकी हलचल पर नियंत्रण
कुछ तो सम्भव है
पर तेरे अंदर उठे ज्वार को
बस में करना
लगता असंभव
पर हर्ज क्या
एक प्रयत्न में
दिल के सागर में
डुबकी लगाने में
उसकी गहराई नापने में
यदि एक रत्न भी मिल जाए
उसे अपनी अँगूठी में सजाने में |

आशा

26 जनवरी, 2011

वह एक बादल आवारा

वह एक बादल आवारा
इतने विशाल नीलाम्बर में
इधर उधर भटकता फिरता
साथ पवन का जब पाता |
नहीं विश्वास टिक कर रहने में
एक जगह बंधक रहने में
करता रहता स्वतंत्र विचरण
उसका यह अलबेलापन
भटकाव और दीवानापन
स्थिर मन रहने नहीं देता
कभी यहाँ कभी वहाँ
जाने कहाँ घूमता रहता |
पर कभी-कभी खुद को
वह बहुत अकेला पाता
बेचारगी से बच नहीं पाता
जब होता अपनों के समूह में
उमड़ घुमड़ कर खूब बरसता
अपने मन की बात कहता |
जब टपटप आँसू बह जाते
कुछ तो मन हल्का होता
पर यह आवारगी उसकी
उसे एक जगह टिकने नहीं देती
और चल देता अनजान सफर पर
पीछे मुड़ नहीं देखता |

आशा