21 अक्टूबर, 2020

अब भूल समझ में आई

 


 

 तुम क्यूँ भूले 

वे बचपन की यादें 

जब साथ मिलकर 

खेलते खाते थे |

लंबित गृह कार्य

 किया करते थे

जब तक पूर्ण ना हो 

भूख प्यास  सब

 भूल जाते थे |

तब कितना प्रवल

 अवधान था 

प्रलोभन का

 नामों निशाँ न था |

तुम रोज अपना  काम करके 

मेरा गृह कार्य

 कर दिया करते थे 

तुम्हीं ने बिगाड़ी थी

 डाली थी आदत मेरी

  परजीवी हो जाने की |

खुद कार्य  करने की

 जरूरत न समझी कभी 

कभी आत्मनिर्भर हो न पाई 

किसी की बैसाखी सदा चाही 

ज़रा से काम के लिए ही |

अब भूल समझ में आई 

पर अब बहुत देर हो गई  है

अपना कार्य स्वयं  करने की

 आदत जो छूट गई है 

 अब पश्च्याताप से क्या लाभ 

 वे दिन लौट तो न पाएंगे |

आशा