10 जनवरी, 2014

जलता दिया

(१)
जलता दिया 
तम तभी हरता 
जब स्नेह हो |
(२)
रीतते रिश्ते 
मन दुखी करते
नैन हें  नम |
(३)
जश्न ही मना
प्रातः से संजा तक 
ना कर काम |
(४)
फंसा जाल में
धूमिल होती आशा
शेष निराशा |
(५)
जीवन धन
नाम निराशा नहीं
आशा ही आशा |
(६)
सुख क्षणिक
आभास नहीं होता
दुखी संसार |
(7)
दुःख बसा है
रग रग में तेरे
कैसे सुखी हो |
(8)
सूनी गलियाँ
रंग रसिया बिन
होली कैसे हो |
(9)

होली में रंगी
भीगी लट उलझे
रंग छूटे ना |
आशा









08 जनवरी, 2014

महाकवि काली दास



कहता हूँ मैं एक कहानी
उज्जैनी नगरी मैं जानी
पेड़ पर बैठा एक युवक 
हाथ में लिए कुल्हाड़ी
जिस डाल पर बैठा था
उसे ही काट रहा था |
ज्ञानी तरसे उसकी अक्ल पर
धीरे से उसे उतारा
कुछ प्रश्न किये
 वह मूक रहा  |
इसी बात से हो  उत्साहित
पहुंचे राज दरवार में
शास्त्रार्थ का न्योता
राजकुमारी विद्योत्तमा को भिजवाया
जो बैठी थी प्रण किये
 होगा निपुण  शास्त्रों में जो
वही पति होगा उसका |
शास्त्रार्थ होने लगा
काली दास के  मौन इशारे  
ज्ञानी की उन  पर व्याख्या ने
काली दास को विजयी बनाया |
वह राजकुमारी व्याह कर लाया
पाकर  निपट गवार अनपढ़ पति 
विदूषी थी बहुत दुखी
डाटा फटकारा और घर से बेघर किया
वह जंगल जंगल भटका
ज्ञान अर्जित किया  
यही कहानी है उसकी 
जो बाद में प्रसिद्ध महाकवि हुआ
उज्जैनी की शान हुआ 
राजा विक्रम की राजसभा में 
प्रमुख महाकवि कालीदास हुआ |
आशा

06 जनवरी, 2014

स्वप्न (क्षणिका )

शाम ढली निशा ने पैर पसारे
हम तब भी स्वप्नों से न हारे
 किसी न किसी में खोए रहे
सुबह कब हुई जान न पाए |
आशा