कहता हूँ मैं एक कहानी
उज्जैनी नगरी मैं जानी
पेड़ पर बैठा एक युवक
हाथ में लिए कुल्हाड़ी
जिस डाल पर बैठा था
उसे ही काट रहा था |
ज्ञानी तरसे उसकी अक्ल पर
धीरे से उसे उतारा
कुछ प्रश्न किये
वह मूक रहा |
वह मूक रहा |
इसी बात से हो उत्साहित
पहुंचे राज दरवार में
शास्त्रार्थ का न्योता
राजकुमारी विद्योत्तमा को भिजवाया
जो बैठी थी प्रण किये
होगा निपुण शास्त्रों में जो
होगा निपुण शास्त्रों में जो
वही पति होगा उसका |
शास्त्रार्थ होने लगा
काली दास के मौन इशारे
ज्ञानी की उन पर व्याख्या ने
काली दास को विजयी बनाया |
वह राजकुमारी व्याह कर लाया
पाकर निपट गवार अनपढ़ पति
विदूषी थी बहुत दुखी
डाटा फटकारा और घर से बेघर किया
वह जंगल जंगल भटका
ज्ञान अर्जित किया
यही कहानी है उसकी
जो बाद में प्रसिद्ध महाकवि हुआ
उज्जैनी की शान हुआ
राजा विक्रम की राजसभा में
प्रमुख महाकवि कालीदास हुआ |
प्रमुख महाकवि कालीदास हुआ |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
टिप्पणी हेतु धन्यवाद रविकर जी |
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह, हेमराज और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
हटाएंबहुत सुन्दर ...............नमस्ते
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सविता जी |
हटाएंकालीदास की रोचक कथा पढ़ कर आनंद हुआ ! बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
टिप्पणी हेतु धन्यवाद कालीपद जी
हटाएंकल 10/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
हटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद अमृता जी |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद कैलाश जी |
हटाएंकालिदास की कहानी, कविता के रूप में पढ़कर अच्छा लगा.
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