27 फ़रवरी, 2021
हाईकु ( सावरिया )
25 फ़रवरी, 2021
स्वप्नों का इतिहास
 स्वप्नों का इतिहास सजीला 
कहाँ कहाँ नहीं पढ़ा
मैंने 
इतिहास तो इतिहास है
मैंने भूगोल
में  भी पढ़ा है| 
प्रतिदिन जब सो कर
उठती हूँ 
अजब सी खुमारी रहती है 
कभी मस्तिष्क रिक्त
नहीं रहता 
 उथल पुथल तो रहती ही है |
यदि एक स्वप्न ही
रोज रोज आने लगे
  कहीं कोई अनर्थ न हो जाए 
शुभ अशुभ के चक्र
में फंसती जाती हूँ |
कई  पुस्तकें टटोलती हूँ 
कहीं कोई हल मिल जाए
पर कभी कभी ही
 स्वप्नों का आना जाना 
हर स्वप्न कुछ कह
जाता है 
ऐसा इतिहास बताता है
|
 बड़े युद्ध हुए है इन के कारण 
खोजे गए शगुन 
अपशगुन के कारण |
पर  यह भी 
कहा जाता 
मन में हों जैसे
विचार
 वैसे ही सपने आते  
वही इतिहास की
पुस्तकों में 
सजोकर रख दिए जाते
हैं |
आशा
|
24 फ़रवरी, 2021
इमली खट्टी है
हे इमली के पेड़ 
तुम्हारे स्वभाव में
इतनी खटास क्यूँ ?
क्या तुम कभी
 मीठे हुए ही नहीं |
क्या तुम्हें  मीठी बाते
 पसंद नहीं आतीं
हर समय खटास
 भरी रहती है 
तुम्हारे मन में |
यहाँ तक कि 
 पत्तियाँ भी खट्टी 
इतनी खटास क्यूँ ? 
क्या कभी मीठे फल 
चखे ही नहीं 
या तुम्हारे दिल ने ही
 स्वीकारे  नहीं | 
कभी तो मन तुम्हारा
भी 
 होता होगा  
कि जो तुम्हें खाए 
तारीफ करे अरे वाह 
कितनी मीठी है इमली |
पर वह है स्वप्न 
तुम्हारे लिए 
ना कभी मीठे हुए 
ना भविष्य में होगे 
जैसे हो वैसे ही
रहोगे |
आशा
23 फ़रवरी, 2021
कान्हां तुम न आए
कान्हां तुम न आए मिलने
जमुना किनारे
वट वृक्ष के नीचे
रोज राह देखी तुम्हारी
पर तुम न आए |
इतने कठोर कैसे हुए
यह रंग बदला कैसे
तुमने वादा किया था
आने का यहीं पर |
आए पर छिपे रहे करील की
झाड़ियों के पीछे
है यह कैसा न्याय प्रभू
तुमने बिसराया मुझे |
कहाँ तो कहा कहते थे
जी न पाओगे मुझसे बिछुड़ कर
पर मैंने तुम्हें पहचान लिया है
तुम रह नहीं सकते
बांस की मुरली के बिना |
तुमने मुझे भरमाया
अपनी शक्ति मुझे बताया
पर यही गलत फहमी रही
मैंने तुम्हारी बात को सच माना |
राह देखी दिन रात तुम्हारी
पर तुम न आए
तुम तो मथुरा के हो गए
फिर लौट न पाए दोबारा |
मेरा विरही मन
तुम्हारी राह देखता रहा
नयन धुधले हुए हैं
वाट जोहते जोहते |
श्याम तुम कब आओगे
मेरी मनोकामना पूर्ण करोगे
तुम भूले हो अपना वादा
पर मैं नहीं भूली अब तक |
आशा
22 फ़रवरी, 2021
स्वप्नों की चौपाल
21 फ़रवरी, 2021
चंचल चपला हिरणी जैसी
कभी चंचल चपल हिरनी जैसी
दौड़ती फिरती थी बागानों में
अब उसे देख मन में ईर्षा होती
क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |
इतनी जीवन्त न हो पाई
बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने
लम्बा समय काट दिया है
अब घबराहट होने लगती है |
और कितना समय रहा शेष
कैसे जान पाऊँ कोई मुझे बताए
क्या बीता समय लौट कर आएगा
मुझमें साहस का संचार होगा |
फिर से कब आत्म विश्वास जागेगा
पर शायद यह मेरी कल्पना है
कभी सच न हो पाएगी
जिन्दगी यूं ही गुजर जाएगी |
आशा

 
 




