01 सितंबर, 2018

बरसात


जब भी फुहार आती है

 ठंडी बयार चलती है
तन भीग भीग जाता है
मन भी कहाँ बच पाता है |
मन गुनगुनाता है
सावन के गीत
होते मन भावन
मन उनमें ही रम जाता है |

बरसात में जब बिजली कड़के
जल बरसे झमाझम 
उमड़ घुमड़ बादल 
इधर से आये उधर को जाए 
तरबतर सारी धरती कर जाए 
धरती पर हरियाली छाये 
बरसात का मौसम 
मन को भा जाए | 


आशा 
















31 अगस्त, 2018

साथ रहने का आनंद






समूह में रहना
 कितना अच्छा लगता है
पहले न जाना
जब सबसे अलग हुए
तभी पहचाना |
जब साथ थे
किसी का भय
 नहीं लगता था
अकेले इंसान को
सब डरा  लेते हैं
धमका लेते हैं |
बंधी मुठ्ठी छुड़ाना
आसान नहीं होता
जब यह समझ आई 
बहुत देर से आई |

चाहत



जन्म से मृत्यु तक
कदम कदम पर ठोकरें
न किसी की मदद
 न प्यार न  दुलार
बस स्वार्थ ही होता उजागर
उस पर यह तन्हाइयां |
प्यार का सौदा क्यूं करें
मिलने का बहाना चाहिए
यदि वह मिल जाए तो
जीवन में कुछ न चाहिए |
आशा

29 अगस्त, 2018

बैर





बैर ----
सम्भाव सदा रखते
ना की किसी से दोस्ती
नहीं किसी से बैर
अति है सब की बुरी
बहुत मिठास लाती कड़वाहट
आपसी संबंधों में
पड़ जाती दरार दिलों में
जो घटती नहीं
 बढ़ती जाती है
बट जाती है टुकड़ों में
जिसने की सीमा पार
उसी का टूटा विश्वास
है जरूरी स्वनियंत्रण
समभाव रखने के लिए
सच्ची मित्रता के  लिए
मन मारना पड़ता है
उसे बरकरार रखने के लिए
बैर भाव पनपने में तो देर नहीं होती
पर बैर मिटाने में वर्षों लग जाते हैं
तब भी दरार कहीं रह जाती है
मन का दर्पण दरक जाता है
फिर जुड़ नहीं पाता
जीवन में सदा
असंतोष बना रहता है
पर बैर नहीं मिट पाता है 
इससे बचने वाले 
जीते हैं खुशहाली में |


आशा