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सारी बीती उन बातों में , कोई भी सार नहीं ,
सार्थक चर्चा करने का भी , कोई अधिकार नहीं |
प्रीत की रीत न निभा पाया , मुझे आश्चर्य नहीं ,
सोचा मैंने क्या व हुआ क्या, अब सरोकार नहीं |
वे रातें काली स्याह सी , जाने कहाँ खो गईं ,
बातें कैसे अधरों तक आईं , जलती आग हो गईं |
आती जाती वह दिख जाती , डूबती अवसाद में ,
ऐसा मैंने कुछ न किया था , जो थी ज्वाला उसमें |
आशा
सार्थक चर्चा करने का भी , कोई अधिकार नहीं |
प्रीत की रीत न निभा पाया , मुझे आश्चर्य नहीं ,
सोचा मैंने क्या व हुआ क्या, अब सरोकार नहीं |
वे रातें काली स्याह सी , जाने कहाँ खो गईं ,
बातें कैसे अधरों तक आईं , जलती आग हो गईं |
आती जाती वह दिख जाती , डूबती अवसाद में ,
ऐसा मैंने कुछ न किया था , जो थी ज्वाला उसमें |
आशा