05 अक्तूबर, 2011

कल्पना

प्रत्यक्ष में जो दिखाई दे
कल्पना में समा जाए
जो कभी ना भी सोचा
कल्पना में होता जाए |
होता आधार उसक
केवल मन की उपज नहीं
होता अनंत विस्तार
कल्पना की झील का |
परिवर्तित होता आयाम
स्थूल रूप पा कर भी
कभी कम तो कभी
अधिक होता |
अपने किसी को दूर पा
कई विचार मन में आते
कल्पना का विस्तार पा
मन में हलचल कर जाते |
जो भी जैसा होता
वैसा ही सोच उसका होता
कल्पना में डूब कर
तिल का ताड़ बना देता |
धर्म और जातीय समीकरण
कई बार बिगडते बनाते
वैमनस्य बढता जाता
जब कल्पना के पंख लगते |
हर रोज जन्म लेती
कोइ नई कल्पना
फलती फूलती
और पल्लवित होती |
नहीं अंत कोई उसका
स्वप्न भी जो दिखाई देता
होता समन्वय और संगम
कल्पना और सोचा का |
आशा





16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी लगी कल्पना की यह उड़ान।
    -----
    कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. अच्छा लिखा है आपने आशा जी

    सकारात्मक तरह से उड़ते हुए कल्पना रुपी परिंदा कभी नहीं थकता
    अपनी उड़ान का उसे पता जो नहीं चलता

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  3. सुंदर प्रस्‍तुति।
    गहरे भाव।

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  4. बहुत सुन्दर कल्पना की यह उड़ान। धन्यवाद|

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  5. बहुत सुन्दर रचना ! मन पंछी की उड़ान ऐसी ही होती है ! बहुत बढ़िया !

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  6. NICE.
    --
    Happy Dushara.
    VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
    --
    MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
    ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
    Net nahi chal raha hai.

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  7. सुन्दर अभिव्यक्ति.शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

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  8. केवल मन की उपज नहीं
    होता अनंत विस्तार
    कल्पना की झील का |

    बहुत खूब

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  9. अपने किसी को दूर पा
    कई विचार मन में आते
    कल्पना का विस्तार पा
    मन में हलचल कर जाते
    aaderniya asha ji..sadar pranam...is shandaar rachna per hardik badhayee aaur aap badon ke ashirwad ki kamna ke sath

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर भाव... सुन्दर प्रस्तुति...

    विजयादशमी की सादर बधाईयाँ....

    जवाब देंहटाएं
  11. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
    नवीन सी. चतुर्वेदी

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