भाव का अविर्भाव
ऐसे ही नहीं होता
बहुत जतन करने होते हैं
तभी निखार आता
सर्वप्रथम उसका शोधन
फिर प्रक्षालन परिवर्धन
और अंत में परिमार्जन
इतनी विपदा सहते सहते
मूल भाव तिरोहित होता
परिवर्तन इतने हो जाते
नया ही कुछ प्रगट होता
मनभावन प्रस्तुति होती
पर मूल भाव रह जाता
किसी कौने में सिमट कर
विश्वास नहीं होता
जो सोचा न था
वही लिखा था |
वही लिखा था |
आशा