हुए धुप से बेहाल
पीत पड़े पत्ते बेचारे
कशमकश में उलझे
अपनी शाखा से
बिछुड़े
झड़ने लगे खिरने लगे
प्रारब्ध से
अनजान
ना ही कोई हमराज
ना ही कोई हमराज
हुए अनाथ इस जहां
में
किसी ने न अपनाया
प्यार किया ना
दुलराया
खुद को बहुत
अकेला पाया
सोचने का समय न
था
वायु वेग के साथ
हुए
अनजान डगर तक जा पहुंचे
थकने लगे तरसने
लगे
विराम
की आकांक्षा लिए
ढलान पर सम्हल न
पाए
फिसल गए खाई तक
पहुंचे
थे चोटिल आहात
स्थिर भी न हो पाए
जाने कब स्वांस
रुकी
जीवन का मोह भंग
हुआ
आश्चर्य तो तब हुआ
कौन थे कहाँ से
आये
क्या चाहत थी
उनकी
कोई निशाँ तक न
छोड़ा
इस दुनिया से नाता तोड़ा |
इस दुनिया से नाता तोड़ा |
आशा
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