16 सितंबर, 2015

थे अनजान


पीले पड़े पत्ते के लिए चित्र परिणाम
हुए धुप से बेहाल
पीत  पड़े पत्ते बेचारे
कशमकश में उलझे
अपनी शाखा से बिछुड़े
झड़ने लगे खिरने  लगे
प्रारब्ध से अनजान 
ना ही कोई हमराज 
हुए अनाथ इस जहां में
किसी ने न अपनाया
प्यार किया ना दुलराया
खुद को बहुत अकेला पाया
सोचने का समय न था
वायु वेग के   साथ हुए
अनजान  डगर तक जा पहुंचे
थकने लगे तरसने लगे
 विराम की आकांक्षा  लिए
ढलान पर सम्हल न पाए
फिसल गए  खाई तक पहुंचे
थे चोटिल आहात
स्थिर भी न हो पाए
जाने कब स्वांस रुकी
जीवन का मोह भंग हुआ
आश्चर्य तो तब  हुआ
कौन थे कहाँ से आये
क्या चाहत थी उनकी
कोई निशाँ तक न छोड़ा 
इस दुनिया से नाता तोड़ा |

आशा

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