05 दिसंबर, 2009

क्षणिका

इधर पत्थर उधर पत्थर ,
जिधर देखो उधर पत्थर ,
काल की अनुभूतियों ने ,
बना दिया मुझे पत्थर |

04 दिसंबर, 2009

बहार


झूलों पर पेंग बढ़ाती आती
कोमल डाली सी झुक जाती
मन मोहक खुशबू छा जाती
जब आती बहार पहाड़ों पर |
प्रकृति की इस बगिया में
वह अपनी जगह बनाती
बनती कभी चंचला हिरनी
या गीत विरह के गाती|
फिर कोयल की कूक उभरती
बोझिल लम्हों को हर लेती
कल कल बहती निर्झरनी सी
लो आई बहार वन देवी सी |

आशा

03 दिसंबर, 2009

बटोही


सागर तट पर खड़ा बटोही
एक बार यह सोच रहा था
क्या वह पार उतर जाएगा
अपना सम्बल जहाँ पायेगा |
अगले क्षण वह मगन हो गया
भवसागर में विलय हो गया
पार उतरना भूल गया वह
जहाँ खड़ा था वहीं रहा वह |
पैरों पर जब हुआ प्रहार
लहरों ने झनकाये तार
उसका मोह भंग हो गया
भटका मन अनंग हो गया |
आई फिर हवा की बारी
हिला गयी मन की फुलवारी
फिर से आया वही विचार
क्या वह पार उतर जाएगा
अपना सम्बल जहाँ पायेगा |

आशा

पहेली

है जिन्दगी
एक अजीब पहेली
कभी चलती है
कभी ठहर जाती है|
जब चलती है
तब अहसास करती है
न जाने और कितने
पड़ाव अभी बाकी हैं |
जिन्दगी की रफ्तार
कभी ज्यादा
तो कभी कम हो जाती है|
यही पड़ाव है
या जिन्दगी का ठहराव
यही बात मुझे
समझ नहीं आती
और यह पहेली
अनसुलझी ही रह जाती |
यह शाम का धुँधलका
कहता है
साँस अभी बाकी है
न हो उदास
आस अभी बाकी है |
जीवन की शाम का
शायद यहीं कहीं है विराम
पर हो क्यूँ ऐसा सोच
पूरी रात अभी बाकी है |


आशा

01 दिसंबर, 2009

बाल श्रमिक

तपती धूप 
दमकते चहरे 
 श्रमकण जिनपर गए उकेरे 
 काले भूरे बाल सुनहरे 
 भोले भाले नन्हे चेहरे 
जल्दी जल्दी हाथ चलाते 
 थक जाते पर रुक ना पाते 












उस पर भी वे झिड़के जाते  सजल हुई आँखे , पर हँसते , मन के टूटे तार लरजते | आशा

30 नवंबर, 2009

एक कहानी तुलसी की

एक गाँव में तुलसी नाम की एक महिला रहती थी | वह रोज अपने आँगन में लगी तुलसी पर जल चढ़ाती थी |
जब वह पूजन करती थी तब वह भगवान से प्रार्थना करती थी कि यदि वह मरे तब उसे भगवान विष्णु का
कन्धा मिले |

एक रात वह अचानक चल बसी | आसपास के सभी लोग एकत्र हो कर उसे चक्रतीर्थ ले जाने की तैयारी
करने लगे | जब उसकी अर्थी तैयार की जा रही थी लागों ने पाया कि उसे उठाना असम्भव है | वह पत्थर
कि तरह भारी हो गई थी |
उधर विष्णु लोक में जोर जोर से घंटे बजने लगे | उस समय विष्णु जी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे |
लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रहीं थीं | घंटों की आवाज से विष्णु जी विचलित हो उठे | लक्ष्मी जी ने परेशानी का
कारण जानना चाहा | भगवान ने कहा मुझे मेरा कोई भक्त बुला रहा है |मुझे अभी वहाँ जाना होगा |
हरी ने एक बालक का रूप धरा व वहाँ जा पहुँचे | वहाँ जा कर उसे अपना कन्धा दिया |जैसे ही भगबान
का स्पर्श हुआ अर्थी एकदम हल्की हो गयी और महिला की मुक्ति हो गई |