Akanksha -asha.blog spot.com
05 दिसंबर, 2009
क्षणिका
इधर पत्थर उधर पत्थर ,
जिधर देखो उधर पत्थर ,
काल की अनुभूतियों ने ,
बना दिया मुझे पत्थर |
1 टिप्पणी:
साधना वैद
6 दिसंबर 2009 को 11:03 am बजे
बहुत खूब । सुन्दर मुक्तक है ।
जवाब दें
हटाएं
उत्तर
जवाब दें
टिप्पणी जोड़ें
ज़्यादा लोड करें...
Your reply here:
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत खूब । सुन्दर मुक्तक है ।
जवाब देंहटाएं