साथ हाला का और मित्रों का
फिर भी उदासी गहराई
अश्रुओं की बरसात हुई
सबब उदासी का
जो उसने बताया
था तो बड़ा अजीब पर सत्य
रूठ गई थी उसकी प्रिया
की मिन्नत बार बार
वादे भी किये हजार
पर नहीं मानी
ना आना था ना ही आई
सारी महनत व्यर्थ हो गयी
वह कारण बनी उदासी का
तनहा बैठ एक कौने में
कई जाम खाली किये
डूब जाने के लिए हाला में
पर फिर से लगी आंसुओं की झाड़ी
वह जार जार रोता था
शांत कोइ उसे न कर पाया
उदासी से रिश्ता वह तोड़ न पाया
बादलों के धुंधलके से बच नहीं पाया
वह अनजान न था उस धटना से
दिल का दर्द उभर कर
हर बार आया
दिल का दर्द उभर कर
हर बार आया
उदासी से छुटकारा न मिल पाया
उस शाम को वह
खुशनुमा बना नहीं पाया |
आशा