05 जून, 2010

बच्चा आज के बड़े शहर का

आज के युग में एक बड़े शहर में ,
सीमेंट, रेत लोहे से बने इस जंगल में,
रहने वाला बच्चा प्रकृति को नहीं जानता ,
रात में भय से छत पर नहीं जाता ,
यह सोच कर रोता है ,
चाँद तारे कहीं उस पर तो ना गिर जायेंगे !


आशा

महक गुलाब की

महकता गुलाब और गुलाबी रंग ,
सब को अच्छा लगता है ,
और सुगंध उसकी ,
साँसों में भरती जाती है ,
उसकी ओर हाथ बढ़ाती है ,
मेरा मन यह कहता है ,
जैसे हो तुम वैसे ही रहना ,
ऐ गुलाब तुम ,
कमल से ना हो जाना ,
जो कीचड़ में खिलता है ,
पर उसमें लिप्त नहींहोता ,
लक्ष्मी के चरणों में रहता ,
पर अपना प्यार न जता पाता ,
केश नायिका के न सजा पाता ,
तुम सा प्रेम न जता पाता ,
तुम चन्दन भी नहीं बनना ,
हो भुजंग से नेह जिसका ,
बेला, चमेली, हरसिंगार न बनना ,
जिनका जीवन क्षण भंगुर है ,
अमलतास के फूल ,
कई झुमकों में लटकते हैं ,
ना तो उनमें खुशबू है ,
ना हर मौसम में खिलते हैं ,
ना कभी उपहार बने ,
नहीं किसी का हार बने ,
तुम पलाश के फूल न होना ,
गुल मोहर जैसे ना होना ,
वे दूर से सुंदर दिखते हैं ,
तुम जैसे कभी न हो पाते ,
सुगंध तुम्हारी मनमोहक ,
इत्र तुम्हारा मन हरता ,
दूर-दूर तक खुशबू देता ,
मुझको सच में यह लगता है ,
तुम जैसा कोई नहीं होता ,
जब भी कोशिश की माली ने ,
तुम्हारा रूप बदलने की ,
तुमतो आकर्षक दिखने लगे ,
पर सुगंध साथ छोड़ गई ,
तुम जैसे हो वैसे ही रहना ,
बागों को सुरभित करते रहना ,
भवरों का गुंजन जब होगा ,
मंद हवा का झोंका होगा ,
खुशबू दिग्दिगंत में होगी ,
समा रंगीन हो जायेगा ,
ऐसा कोई फूल नहीं जग में ,
जो तुमसे तुलना कर पाता ,
तुम तो फूलों के राजा हो ,
काँटों में शान से जगह बनाते ,
हर अवसर पर सराहे जाते ,
इसी शान को जीवित रखना ,
कभी नष्ट न होने देना |


आशा

04 जून, 2010

सृजन चित्रों का

मै हूँ एक चित्रकार ,
रंगों से चित्र सजाता हूँ ,
मन कि उड़ान को जी भर कर,
चित्रों में दर्शाता हूँ ,
हर रंग अनूठा लगता है ,
जब वह उभर कर आता है ,
मेरा अंतस दर्शाता है ,
पूरा केनवास सज जाता है ,
सारे रंग जब मिल जाते है ,
अद्भुत दृश्य बनाते हैं ,
वे जो चाहे दिखलाते हैं ,
समायोजन सिखलाते हैं ,
मैं कल्पना में खोया रहता हूँ ,
हर क्षण विचार पनपते हैं ,
उन सब के मिल जाने से ,
कुछ नया बन जाने से ,
आयाम सृजन का बढ़ता है ,
मन स्पंदित होने लगता है ,
हर दिन कुछ नया करता हूँ ,
नई कल्पना आती है ,
मस्तिष्क पर छा जाती है ,
मन पंछी सा उड़ता है ,
नई दिशा मिल जाती है ,
एक और कृति बन जाती है ,
इन्द्रधनुष के सारे रंग ,
जब आकाश पर दिखते हैं ,
अपना रंग बिखेरते हैं ,
दृश्य मनोरम होता है ,
जब भी मैं उसको देखूँ ,
अपनी सुध बुध खो बैठूँ ,
मैं बहुरंगी चादर ओढ़ ,
उसमें खुद को लिपटा पाऊँ ,
जितने भी रंग भरे मैंने ,
उनकी छटा निराली है ,
स्मृति पटल पर जब छाए ,
मेरे चित्र सजाती है ,
रूमानी मुझे बनाती है ,
तूलिका और रंगों का मिश्रण ,
उस पर कोरा केनवास ,
जब रंगों का संयोजन होता है ,
मुझे व्यस्त कर जाता है ,
मेरे मन की उड़ान को ,
और दूर ले जाता है |


आशा

03 जून, 2010

फिर शिकायत क्यूँ

मरूभूमि सा मेरा जीवन ,
मृगतृष्णा बन कर तुम आये ,
जब-जब तुमको पाना चाहा ,
बहुत दूर नजर आये ,
मैंने अपना सब कुछ छोड़ा,
जब से तुमसे नाता जोड़ा,
जो चाहा था बन न सके
तुम्हारे ही हो कर रह गये ,
दुखों को भी झेला हमने ,
सुख से भी ना दूर रहे ,
जैसा तुमने चाहा था ,
वैसे ही बन कर रह गये ,
अपना अस्तित्व मिटा बैठे ,
खुद को ही हम भूल गये ,
फिर शिकायत क्यूँ करते हो ,
मैंने जो चाहा बन न सका ,
आपसी दूरी घटा न सका ,
क्यूँ गिले शिकवे करते रहते हो ,
साथ चलने का वादा क्यूँ नहीं करते ,
साथ रहेंगे क्यूँ नहीं कहते ?


आशा

02 जून, 2010

पथिक से

ऐ पथिक सुगंध की चाह में ,
प्रेम के प्रवाह में ,
उस ओर तुम जाना नहीं ,
जहाँ काँटे बिछे हों राह में |
उन पुष्पों से दूरी रखना ,
जो शूलों के साथ पले हों ,
वे कहीं किनारा ना कर लें ,
और काँटे तुम्हें छलनी कर दें |
उन पुष्पों से बच के रहना ,
जो छूते ही बंद कर लें तुमको ,
पूरी तरह निगल जायें ,
आत्मसात तुम्हें कर जायें|
उस राह भी तुम ना जाना ,
छुईमुई के पौधे हों जहाँ ,
तुम उनके जैसे ना बन जाना ,
स्पर्श मात्र से ना सकुचाना ,
अपना अस्तित्व ना खो देना |
जिस राह में बाधा अनेक ,
बाधा को शूल न समझ लेना ,
शूर वीर बन आगे बढ़ना ,
एक लक्ष्य को अपनाना ,
सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी ,
कीर्ति दिग्दिगंत में होगी |
ऐ पंथी मुझे भूल न जाना ,
यादों को न मिटने देना ,
अमित निशान जो पड़े पंथ पर ,
धूमिल उन्हें न होने देना ,
ना ही कभी मिटने देना |
तुममें साहस बहुत अधिक है ,
कुछ करने का जज़्बा भी है ,
उसे न कभी कम होने देना ,
गति को क्षीण न होने देना |
बीते कल को भूल न जाना ,
सब को सुरभित करते जाना |
आशा से रिश्ता रखना ,
निराशा पास न आने देना,
यदि कभी देखो मुड़ कर पीछे ,
तो अलविदा न कहना |


आशा

01 जून, 2010

आत्म संतुष्टि

चतरू नाम का एक किसान था |उसे किसी प्रकार की कोई चिंता न थी |तीनों बेटियांअपनी अपनी ससुराल में खुश थीं |
उसके कोई बेटा नहीं था पर उसका भी कोई दुःख उसे न था |वह अपनी पत्नी के साथ प्रसन्नता पूर्वक रहता था |
एक दिन अचानक उसकी पत्नी जमुना बीमार पड़ गई |बहुत इलाज करवाया पर चतरू उसे बचा न सका | वह बहुत अकेला महसूस करने लगा |हर समय अपनी पत्नी की यादों में खोया रहता |समय के साथ उसने भी अकेले रहने का अभ्यास कर लिया |एक दिन उसने सोचा कि क्यों न वह अपनी बेटियों से मिल आये |इसी बहाने बच्चों से मिलना भी हो जायेगा और उसका मन भी बहल जाएगा |
सबसे पहले वह अपनी बड़ीबेटी ग्रीष्म के घर गया |उसका विवाह एक कृषक से हुआ था |उस साल पानी की कुछ
कमी थी |जल संकट से कैसे निपटें सब इसी सोच विचार में ब्यस्त थे |जब चतुरू चलने लगा उसने अपनी बेटी से पूंछा कि वह जब तीर्थ करने जाए तब उसके लिए क्या मांगे |बेटी बोली ,"पिताजी आपको तो पता ही है बिना पानी के सारी खेती सूख जाती है |आप इश्यर से भरपूर बारिश के लिए प्रार्थना करना "|
चतरू अपनी दूसरी बेटी शशी के घर गया |वह अपने पिता से मिल कर बहुत खुश हुई |शशी का विवाह एक कुम्हार से
हुआ था |वे दौनों मटके बनाते ,धुप में सुखाते और फिर पका कर बाजार में बेचते थे |तीन माह कब निकल गए पता ही न चला |चलते समय शशी से पूंछाकि उसे क्या चाहिए |वह बोली ,"पिताजी जब आप भगवन से प्रार्थना करें मेरे लिए
एक ही बात मांगना ,चाहे जो हो पानी न बरसे |पानी से मेरा बहुत नुकसान हो जाता है |"
चतरू सोच विचार करता हुआ अपनी तीसरी बेटी वर्षा के पास पहुंचा |वह बहुत साधारण स्थिती में रहती थी |पति पत्नी
दौनों काम पर जाते थे तब जा कर घर चलता था |कुछ दिन रुक कर चतरू ने तीर्थ जाने की इच्छा प्रगट की ||
जब वह चलने लगा बोला ,"बेटी मैं तीर्थ करने जा रहा हूं ,तेरे लिए भगवन से क्या मांगूं |" बेटी बोली ,
"पिताजी इश्वर की कृपा से आवश्यकता पूरी हो इतना सब कुछ है मेरे पास |मुझे और अधिक कि कोइ आवश्यकता नहीं है |
आप तो ईश्वर से सब के कल्याण के लिए कामना करना |"अपनी बेटी कि बात सुनकर चतरू को बहुत प्रसन्नता हुई |वह प्रसन्न
मन तीर्थ यात्रा पर चल दिया |
सच है आत्म संतुष्टि से बढ़ कर दुनिया में कुछ नहीं होता |इश्वर सब देखता है |

आशा

31 मई, 2010

प्यार का बुखार

ऐसा कोई मापक न बना,

जो प्यार का बुखार उतार सके ,

कोई मानक पैमाना न हुआ ,

जो सही आकलन कर पाए |

विज्ञानं ने प्रगति कर ली है ,

मशीनें भी कई बना ली हैं

पर ऐसे उपकरण की खोज में ,

वह भी अभी तक असफल है |

अब तक कोई मशीन न बनी ,

जो प्यार की तीव्रता नाप सके ,

ऐसी कोई दवा न बनी,

जो प्यार का बुखार उतार सके |
मन में जिसने प्यार किया ,

और प्रगट न कर पाया ,

वह शायद सबसे असफल रहा ,

बाज़ी मार नहीं पाया |

जिसको प्यार जताना आया ,

उसने ही मीर मार लिया ,

पूरा-पूरा प्यार पाने का ,

केवल उसने ही अधिकार लिया |

इक तरफा प्यार प्यार नहीं होता ,

वह टिकाऊ भी नहीं होता ,

प्यार की आग में दोनों झुलसें ,

विरही मन दर-दर भटके ,

तब प्यार सोने सा तपता है ,

जीवन में खरा उतरता है ,

क्या होगा थर्मामीटर का ,

जब प्यार का बुखार उतर जाये ,

जब आँखों में प्यार छलकता है ,

समझने वाला ही समझता है ,

आँखें ही प्यार की भाषा समझती हैं ,

शायद प्यार का पैमाना होती हैं |



आशा